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Toggleडोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण

20 जनवरी 2025 को डोनाल्ड ट्रंप ने वाशिंगटन डी.सी. में आयोजित एक समारोह में अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। ठंडे मौसम के कारण यह समारोह कैपिटल रोटुंडा के अंदर आयोजित किया गया, जिससे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच निकटता और कभी-कभी असहज बातचीत हुई।

मुख्य बिंदु:
- शपथ ग्रहण समारोह: मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने ट्रंप को शपथ दिलाई। ध्यान देने योग्य है कि ट्रंप ने बाइबिल पर हाथ रखकर शपथ नहीं ली, क्योंकि बाइबिल समय पर नहीं पहुंच पाई थी।
- उपस्थित गणमान्य व्यक्ति: समारोह में तकनीकी उद्योग के प्रमुख व्यक्तित्व जैसे मार्क जुकरबर्ग और जेफ बेजोस, साथ ही विदेशी गणमान्य व्यक्ति जैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन उपस्थित थे।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम: गायिका कैरी अंडरवुड ने “अमेरिका द ब्यूटीफुल” गीत प्रस्तुत किया, हालांकि उन्हें ऑडियो समस्याओं के कारण बिना संगीत के गाना पड़ा।
- राजनीतिक सौहार्द: समारोह से पहले, जो और जिल बाइडेन ने ट्रंप और मेलानिया के साथ चाय पर मुलाकात की, जो राजनीतिक सौहार्द का प्रतीक था।
- अनुपस्थित हस्तियां: पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा समारोह में उपस्थित नहीं थीं, उन्होंने ट्रंप की योग्यता पर सवाल उठाते हुए अपनी अनुपस्थिति का कारण बताया।
- प्रारंभिक कार्य: शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, ट्रंप ने कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें से एक झंडा प्रोटोकॉल से संबंधित था।
यह शपथ ग्रहण समारोह कई कारणों से यादगार रहा, जिसमें बाइबिल की अनुपस्थिति, तकनीकी समस्याएं, और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच सौहार्दपूर्ण मुलाकातें शामिल थीं।
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैरमौजूदगी के राजनीतिक मायने

20 जनवरी 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ली। इस ऐतिहासिक मौके पर कई विदेशी गणमान्य व्यक्तियों ने हिस्सा लिया, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समारोह में उपस्थित नहीं थे। उनकी गैरमौजूदगी ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना दिया।
मोदी की गैरमौजूदगी के संभावित कारण और राजनीतिक संकेत:
- राजनयिक दूरी और आपसी संबंध:
ट्रंप और मोदी के बीच पहले कार्यकाल में मजबूत रिश्ते देखे गए थे, लेकिन ट्रंप की हार और जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ बदलाव आए। ट्रंप के फिर से सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों की दिशा पर नजरें टिकी हैं। मोदी की गैरमौजूदगी को एक सधा हुआ कूटनीतिक कदम माना जा रहा है, जिससे यह संकेत मिले कि भारत किसी विशेष राजनीतिक दल के साथ अपनी प्राथमिकता नहीं दिखाना चाहता। - घरेलू प्राथमिकताएँ:
2025 की शुरुआत में भारत में राजनीतिक हलचल तेज है, खासकर दिल्ली विधानसभा चुनाव के चलते। प्रधानमंत्री मोदी का देश में रहना और चुनावी रणनीति पर ध्यान केंद्रित करना उनकी प्राथमिकता हो सकता है। - चीन और रूस के साथ भारत के संबंध:
डोनाल्ड ट्रंप के पिछले कार्यकाल में चीन और रूस के खिलाफ आक्रामक रुख देखा गया था। वहीं, भारत की विदेश नीति दोनों देशों के साथ संतुलन बनाए रखने पर केंद्रित रही है। ऐसे में मोदी का शपथ ग्रहण में न जाना यह दर्शा सकता है कि भारत, ट्रंप प्रशासन के कड़े रुख से दूरी बनाना चाहता है। - ट्रंप की विवादित छवि:
डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति और नीतियों पर अमेरिका और दुनिया भर में मिली-जुली राय है। मोदी सरकार यह संदेश देना चाहती हो सकती है कि भारत ट्रंप की राजनीति के प्रति अति-समर्थक नहीं है, बल्कि अमेरिका के साथ संबंधों को संस्थागत आधार पर देखता है, न कि किसी विशेष नेता के साथ। - प्रोटोकॉल और प्रतिनिधित्व:
भारत की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू या विदेश मंत्री एस. जयशंकर जैसे वरिष्ठ नेता को भेजा जा सकता था। ऐसा नहीं होने से यह स्पष्ट होता है कि भारत ने इसे महज औपचारिकता तक सीमित रखने का फैसला किया।
गैरमौजूदगी का संदेश:
प्रधानमंत्री मोदी का ट्रंप के शपथ ग्रहण में न जाना एक कूटनीतिक संदेश है। भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को व्यक्तियों से परे रखकर संस्थागत स्तर पर मजबूत बनाए। यह भी संकेत देता है कि भारत अपने कूटनीतिक और रणनीतिक निर्णयों में स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है, चाहे वह अमेरिका हो, रूस, या चीन।
निष्कर्ष:
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण में पीएम मोदी की गैरमौजूदगी को भारत-अमेरिका संबंधों में एक संतुलन बनाए रखने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि भारत किसी भी राजनीतिक धारणा से बचते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने के लिए तैयार है।

दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।