ज्ञानेश कुमार बने भारत के 26वें मुख्य चुनाव आयुक्त: यह नियुक्ति कितना निष्पक्ष 🏛️, कितना पक्षपातपूर्ण ⚖️?

CEC Gyanesh Kumar

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]

ज्ञानेश कुमार बने भारत के नए Chief Election Commissioner

Today’s national news (CEC) भारत के लोकतंत्र का आधार उसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया है। चुनाव आयोग (ECI) देश के सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों में से एक है, जो इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करता है। हाल ही में, ज्ञानेश कुमार को भारत का 26वां मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) नियुक्त किया गया, और यह फैसला तीन सदस्यीय चयन समिति द्वारा लिया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शामिल थे। हालाँकि, यह निर्णय 2:1 के बहुमत से हुआ, क्योंकि राहुल गांधी ने इस नियुक्ति का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका का हवाला देते हुए इसे टालने की मांग की थी।

तो क्या यह नियुक्ति संविधान और लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है? क्या विपक्ष की आपत्ति जायज़ है? आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें।


कौन हैं ज्ञानेश कुमार?

  • 1988 बैच केरल कैडर के IAS अधिकारी
  • संसदीय कार्य मंत्रालय और सहकारिता मंत्रालय में सचिव के रूप में काम कर चुके हैं।
  • गृह मंत्रालय में रहते हुए राम मंदिर ट्रस्ट की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक तैयार करने में अहम योगदान दिया।
  • IIT कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पर्यावरण अर्थशास्त्र की पढ़ाई की।
  • उत्तर प्रदेश के आगरा के निवासी हैं और एक चिकित्सक परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

राहुल गांधी और कांग्रेस का विरोध क्यों?

क्या इस नियुक्ति में जल्दबाजी की गई?

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति पर आपत्ति जताई है। राहुल गांधी ने कहा कि सरकार को 19 फरवरी तक इंतजार करना चाहिए था, क्योंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है।

राहुल गांधी का असहमति नोट:

  • उन्होंने चयन समिति में अपनी असहमति दर्ज कराई और यह तर्क दिया कि

    “मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होनी चाहिए।”

  • सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश दिया था कि चुनाव आयोग की नियुक्ति निष्पक्ष होनी चाहिए और इसमें कार्यपालिका का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
  • नई नियुक्ति प्रक्रिया में CJI (मुख्य न्यायाधीश) को बाहर कर दिया गया है, जिससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ गया है।
  • राहुल गांधी ने इस जल्दबाजी भरी नियुक्ति को सरकार का सुप्रीम कोर्ट के संभावित आदेश से बचने का प्रयास बताया।

कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल का बयान:

  • “यह हमारे संविधान की भावना के खिलाफ है।”
  • “सरकार चुनाव आयोग पर पूरी तरह से नियंत्रण पाना चाहती है।”
  • “यह नियुक्ति चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है।”

क्या यह नियुक्ति निष्पक्ष है?

नए कानून के तहत हुई पहली नियुक्ति

पहले CEC और चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री, CJI और नेता प्रतिपक्ष की समिति द्वारा होता था।
लेकिन 2023 में केंद्र सरकार ने CJI को इस चयन पैनल से हटा दिया और अब यह चयन केवल प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता प्रतिपक्ष की तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाता है।

क्या इससे कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ा?

विशेषज्ञों का मानना है कि CJI को हटाने से यह प्रक्रिया अब पूर्ण रूप से सरकार के नियंत्रण में आ गई है।
इससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि इस बदलाव का उद्देश्य चुनाव आयोग को सरकार के अधीन लाना है।


ज्ञानेश कुमार के सामने क्या चुनौतियाँ होंगी?

1. लोकसभा चुनाव 2024 की निष्पक्षता सुनिश्चित करना

2024 के आम चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर पहले भी सवाल उठाए गए हैं, और अब विपक्ष इस नियुक्ति को लेकर और भी ज्यादा सतर्क रहेगा।

2. विधानसभा चुनावों का संचालन

उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण चुनाव होने वाले हैं:

  • 2024: बिहार विधानसभा चुनाव
  • 2026: पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी विधानसभा चुनाव
  • 2027: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव

3. विपक्षी दलों और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस नियुक्ति के खिलाफ पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं।
अगर अदालत इस मामले में कोई आदेश देती है, तो चुनाव आयोग की भूमिका और अधिक संवेदनशील हो जाएगी।


क्या चुनाव आयोग की स्वतंत्रता खतरे में है?

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खतरे में?

  • चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था माना जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इस पर पक्षपात के आरोप बढ़े हैं।
  • सरकार द्वारा की गई नियुक्तियों, फैसलों और चुनावी प्रक्रिया में बदलावों को लेकर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है।
  • इस नियुक्ति ने इन चिंताओं को और अधिक बढ़ा दिया है।

भविष्य की राह

अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई सख्त निर्णय लेता है, तो हो सकता है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में फिर से बदलाव किए जाएं।
लेकिन अगर अदालत ने इस नियुक्ति को वैध ठहराया, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि अब चुनाव आयोग की पूरी नियुक्ति प्रक्रिया सरकार के हाथ में होगी।


निष्कर्ष: क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा है?

ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति भारत के लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।
अगर चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से काम करता है, तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत होगा।
लेकिन अगर चुनाव आयोग के फैसलों में सरकार का प्रभाव साफ़ नजर आता है, तो यह भारत की चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करेगा।

अब सवाल आप पर है – क्या यह नियुक्ति निष्पक्ष है, या इसमें सरकार का प्रभाव अधिक है? 🤔

यह भी पढ़ें:-

Delhi CM: दिल्ली के नए मुख्यमंत्री की घोषणा कब होगी?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें