Murshidabad : क्या ममता बनर्जी वक्फ कानून को पश्चिम बंगाल में रोक पाएंगी?

क्या ममता रोक पायेंगी वक्फ कानून?

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क्या ममता बनर्जी वक्फ कानून को पश्चिम बंगाल में रोक पाएंगी? अनुच्छेद 254, केंद्र-राज्य टकराव और सियासी खेल

Murshidabad violence – आज हम एक ऐसे मुद्दे पर गहराई से बात करेंगे, जो पश्चिम बंगाल की सियासत में तूफान ला रहा है—वक्फ संशोधन कानून 2025 और ममता बनर्जी का दावा कि वो इसे अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगी। क्या ममता दीदी सचमुच इस केंद्रीय कानून को रोक सकती हैं? क्या ये सिर्फ सियासी बयानबाजी है, या इसके पीछे कोई ठोस कानूनी आधार है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या ये बयान पश्चिम बंगाल के 30% मुस्लिम वोटबैंक को साधने की रणनीति है? आइए, इसे संविधान, इतिहास, विशेषज्ञों की राय और सियासी नजरिए से समझते हैं।


Waqf Amendment Bill 2025
Waqf Amendment Bill 2025

वक्फ संशोधन कानून 2025: कहानी की शुरुआत

वक्फ (संशोधन) कानून 2025 को केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2025 से पूरे देश में लागू कर दिया। इस कानून को संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—से मंजूरी मिली, और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिए। इसका मकसद वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना, दुरुपयोग रोकना और खास तौर पर गरीब मुस्लिम समुदाय, महिलाओं और बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करना है। स्रोत

लेकिन इस कानून को लेकर विवाद शुरू हो गया। कई विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, और मुस्लिम संगठन, जैसे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो साफ कह दिया, “मैं वक्फ कानून को बंगाल में लागू नहीं होने दूंगी। मैं अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्तियों की रक्षा करूंगी!” स्रोत

ममता का ये बयान सुनकर सवाल उठता है—क्या कोई राज्य सरकार केंद्र के कानून को यूं ही खारिज कर सकती है? जवाब छिपा है संविधान के अनुच्छेद 254 में।


Waqf Amendment Bill 2025 lolksabha men bahas
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अनुच्छेद 254: केंद्र और राज्य के बीच कानूनी बॉस कौन?

भारतीय संविधान में कानून बनाने की शक्तियों को तीन सूचियों में बांटा गया है—केंद्रीय सूची, राज्य सूची, और समवर्ती सूची। वक्फ कानून समवर्ती सूची का विषय है, यानी केंद्र और राज्य दोनों इस पर कानून बना सकते हैं। लेकिन अगर केंद्र और राज्य के कानून में टकराव हो, तो अनुच्छेद 254 साफ कहता है कि केंद्र का कानून ही मान्य होगा। अगर कोई राज्य अलग कानून बनाना चाहता है, तो उसे राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी पड़ती है। बिना इस मंजूरी के, राज्य का कानून बेकार है। स्रोत

ममता बनर्जी ने अभी तक कोई अलग वक्फ कानून बनाया नहीं है, जो केंद्र के कानून से टकराए। उनका बयान सिर्फ इसे लागू न करने का है। लेकिन अनुच्छेद 256 कहता है कि राज्यों का कर्तव्य है कि वो संसद द्वारा पारित कानून को लागू करें। अगर कोई राज्य ऐसा नहीं करता, तो ये संवैधानिक असफलता मानी जा सकती है, और केंद्र के पास अनुच्छेद 355 या 356 के तहत कार्रवाई करने की शक्ति है। स्रोत

तो क्या ममता का दावा कानूनी तौर पर टिकेगा? विशेषज्ञों का कहना है—नहीं। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इसे “राजनीतिक बयानबाजी” करार दिया है। उनके मुताबिक, संसद से पास और राष्ट्रपति से मंजूर कानून को राज्य रोक नहीं सकता। स्रोत


केंद्र-राज्य टकराव: इतिहास से सबक

ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी राज्य ने केंद्र के कानून का विरोध किया हो। आइए, कुछ पुराने उदाहरण देखते हैं कि ऐसे टकराव का क्या नतीजा निकला:

  1. नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019

    जब केंद्र ने CAA पास किया, तो पश्चिम बंगाल, केरल, और पंजाब जैसे राज्यों ने इसका विरोध किया। ममता बनर्जी और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि वो इसे अपने राज्यों में लागू नहीं करेंगे। लेकिन कानूनी तौर पर वो इसे रोक नहीं सके। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हुईं, लेकिन CAA लागू रहा। राज्यों ने सिर्फ प्रतीकात्मक विरोध किया, जैसे विधानसभा में प्रस्ताव पास करना, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं था। स्रोत

    नतीजा: केंद्र का कानून लागू हुआ, और राज्यों का विरोध सियासी बयानबाजी तक सीमित रहा।

  2. कृषि कानून, 2020:
    केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों ने विरोध किया। पंजाब ने तो अपने अलग कानून बनाए, जो केंद्र के कानूनों को निष्प्रभावी करने की कोशिश करते थे। लेकिन इन कानूनों को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली, और सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा। बाद में, किसान आंदोलन की वजह से केंद्र ने खुद ये कानून वापस ले लिए। स्रोत

    नतीजा: राज्यों के कानून बेकार रहे, लेकिन सियासी दबाव ने भले ही केंद्र को झुकने पर मजबूर किया।

  3. GST लागू करना (2017):
    जब GST लागू हुआ, तो कई राज्यों ने इसका विरोध किया, क्योंकि ये उनकी वित्तीय स्वायत्तता पर चोट थी। पश्चिम बंगाल ने भी शुरुआत में इसे लागू करने में देरी की। लेकिन संवैधानिक संशोधन और GST काउंसिल की व्यवस्था के तहत, सभी राज्यों को इसे मानना पड़ा। स्रोत

    नतीजा: केंद्र की जीत हुई, और राज्यों को कानून मानना पड़ा।

इन उदाहरणों से साफ है कि संवैधानिक रूप से केंद्र का पलड़ा भारी होता है। ममता का मौजूदा बयान भी CAA जैसे विरोधों की तरह प्रतीकात्मक हो सकता है, लेकिन कानूनी तौर पर इसे रोकना मुश्किल है।


Murshidabad Violence
Murshidabad Violence
ममता का सियासी दांव: मुस्लिम वोटबैंक और अल्पसंख्यक कार्ड
ममता का सियासी दांव: मुस्लिम वोटबैंक और अल्पसंख्यक कार्ड

ममता का सियासी दांव: मुस्लिम वोटबैंक और अल्पसंख्यक कार्ड

Murshidabad Violence – पश्चिम बंगाल में करीब 30% आबादी मुस्लिम है, जो टीएमसी का बड़ा वोटबैंक है। ममता बनर्जी की राजनीति हमेशा से अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय, के इर्द-गिर्द रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 42 में से 29 सीटें जीतीं, और मुस्लिम वोट इसमें बड़ा फैक्टर था। स्रोत

वक्फ कानून को लेकर ममता का बयान सियासी नजरिए से समझा जा सकता है। Murshidabad और Malda जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन और हिंसा देखी गई। ममता ने इसे मौका माना और अल्पसंख्यकों को ये संदेश दिया कि “दीदी” उनकी ढाल है। कोलकाता में जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “जब तक दीदी है, तुम्हारी संपत्ति सुरक्षित है।” स्रोत

विशेषज्ञों का मानना है कि ये बयान 2026 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर दिया गया है। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं, “ऐसे बयान अक्सर वोटबैंक को मजबूत करने के लिए होते हैं। लेकिन संवैधानिक रूप से, केंद्र के कानून को चुनौती देना आसान नहीं।” स्रोत

सियासी विश्लेषक पार्था चटर्जी का कहना है, “ममता का ये स्टैंड मुस्लिम समुदाय में उनकी विश्वसनीयता को और मजबूत करता है। बंगाल में बीजेपी लगातार हिंदुत्व कार्ड खेल रही है, और ममता इसके जवाब में अल्पसंख्यक कार्ड खेल रही हैं।” स्रोत


विशेषज्ञों की राय: कानून बनाम सियासत

  1. अश्विनी उपाध्याय (सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता):
    “ममता का बयान सिर्फ सियासी है। संसद से पास कानून को लागू करना राज्यों का कर्तव्य है। अगर वो इसे लागू नहीं करतीं, तो ये संवैधानिक संकट पैदा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई ठोस कदम नहीं दिखता।” स्रोत
  2. सुभाष कश्यप (संविधान विशेषज्ञ):
    “अनुच्छेद 254 और 256 साफ कहते हैं कि केंद्र का कानून सर्वोपरि है। राज्यों के पास विरोध का अधिकार है, लेकिन इसे लागू न करना संवैधानिक उल्लंघन है। ममता को सुप्रीम कोर्ट जाना होगा, और वहां भी उनके पास मजबूत आधार होना चाहिए।” स्रोत
  3. फैजान मुस्तफा (कानून विशेषज्ञ):
    “वक्फ कानून समवर्ती सूची का हिस्सा है। अगर कोई राज्य इसे लागू नहीं करता, तो केंद्र के पास अनुच्छेद 356 के तहत सख्त कदम उठाने की शक्ति है। लेकिन ममता का बयान सियासी ज्यादा और कानूनी कम है। वो जनता को ये दिखाना चाहती हैं कि वो अल्पसंख्यकों के साथ हैं।” स्रोत

विशेषज्ञों का एकमत है कि ममता के पास कानूनी रास्ता सीमित है। वो सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं, लेकिन वहां भी कानून को रद्द करने के लिए ठोस आधार चाहिए, जैसे कि ये संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता हो। अभी तक ऐसी कोई मजबूत याचिका सामने नहीं आई है।


सुप्रीम कोर्ट का रास्ता: क्या हो सकता है?

वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। AIMPLB, जमीयत उलमा-ए-हिंद, और डीएमके जैसे संगठनों ने इसे अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन बताया है। स्रोत। ममता की पार्टी टीएमसी भी कोर्ट जा सकती है, लेकिन इतिहास बताता है कि केंद्र के कानून को रद्द करना आसान नहीं।

उदाहरण के लिए, CAA के खिलाफ 200 से ज्यादा याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में हैं, लेकिन अभी तक कोई फैसला नहीं आया, और कानून लागू है। अगर ममता कोर्ट जाती हैं, तो उन्हें ये साबित करना होगा कि वक्फ कानून अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये मुश्किल होगा, क्योंकि कानून का मकसद पारदर्शिता और कल्याण बताया गया है।


ममता के बयान का असर: वोटबैंक और सामाजिक तनाव

ममता का बयान सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और सियासी असर भी डाल रहा है। मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ हिंसा हुई, जहां प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों में आग लगा दी। स्रोत। ममता ने इसे शांत करने की बजाय, अल्पसंख्यकों का पक्ष लेकर माहौल को और गर्म कर दिया।

सियासी तौर पर, ये बयान टीएमसी को मुस्लिम वोटबैंक में और मजबूत कर सकता है। लेकिन इसके जोखिम भी हैं। बीजेपी इसे “तुष्टिकरण की राजनीति” बता रही है, और हिंदू वोटरों को एकजुट करने की कोशिश कर रही है। 2026 के चुनाव में ये मुद्दा बड़ा बन सकता है। स्रोत


निष्कर्ष: ममता की राह और संविधान की ताकत

तो दोस्तों, क्या ममता बनर्जी वक्फ कानून को रोक पाएंगी? कानूनी तौर पर—नहीं। अनुच्छेद 254 और 256 साफ कहते हैं कि केंद्र का कानून लागू होगा। ममता सुप्रीम कोर्ट जा सकती हैं, लेकिन वहां भी उनकी राह आसान नहीं। इतिहास में CAA और GST जैसे टकरावों से यही सबक मिलता है कि केंद्र का पलड़ा भारी रहता है।

लेकिन सियासी नजरिए से, ममता का ये बयान एक मास्टरस्ट्रोक है। वो मुस्लिम वोटबैंक को साध रही हैं और बीजेपी के हिंदुत्व नैरेटिव का जवाब दे रही हैं। विशेषज्ञों की राय और संवैधानिक प्रावधानों को देखें, तो ये साफ है कि ममता का स्टैंड ज्यादा सियासी है, कानूनी कम।

आपको क्या लगता है? क्या ममता का ये दांव 2026 में कामयाब होगा, या संविधान की ताकत फिर जीतेगी? कमेंट में जरूर बताएं।

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