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Toggleनिशिकांत दुबे: बीजेपी के फायरब्रांड सांसद, जिनके लगाए आग में कई नेता झुलस चुके हैं ।
21 अप्रैल 2025 को झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक बार फिर सुर्खियाँ बटोरीं, जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और तमिलनाडु के राज्यपाल पर तीखा हमला बोला। उनकी टिप्पणी थी, “अगर देश में कोई धार्मिक युद्ध भड़का रहा है, तो वह सुप्रीम कोर्ट है। आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं।” इस बयान ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि उनकी पार्टी को भी सफाई देने के लिए मजबूर कर दिया। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तुरंत इसे दुबे का निजी बयान बताकर पार्टी का पल्ला झाड़ लिया। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब निशिकांत दुबे ने अपनी आक्रामक बयानबाजी से विवाद को जन्म दिया हो।
निशिकांत दुबे पिछले एक दशक से भारतीय राजनीति में एक चर्चित चेहरा रहे हैं। वह अपनी बेबाकी और पार्टी लाइन से हटकर दिए गए बयानों के लिए जाने जाते हैं। उनके समर्थक उन्हें “भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला योद्धा” मानते हैं, जबकि विरोधी उन्हें “ध्रुवीकरण करने वाला नेता” कहते हैं। इस लेख में हम निशिकांत दुबे के राजनीतिक सफर, उनके विवादास्पद बयानों, और उनके समर्थकों व विरोधियों की राय का विश्लेषण करेंगे। वो सुशील कुमार मोदी और सुब्रमण्यम स्वामी के मिले जुले रूप लगते हैं।

निशिकांत दुबे कौन हैं? एक संक्षिप्त परिचय
निशिकांत दुबे झारखंड के गोड्डा से चार बार के सांसद हैं। उन्होंने 2009 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और तब से लगातार इस सीट पर कब्जा जमाए हुए हैं। दुबे एक शिक्षित और कुशल वक्ता हैं, जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक और पुणे के डी.वाई. पाटिल इंस्टीट्यूट से एमबीए की डिग्री हासिल की है। राजनीति में आने से पहले वह कॉरपोरेट जगत में सक्रिय थे।
उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत बीजेपी के साथ हुई, और वह जल्द ही पार्टी के एक प्रभावशाली चेहरे के रूप में उभरे। उनकी छवि एक “फायरब्रांड” नेता की है, जो विपक्ष पर आक्रामक हमले करने से नहीं हिचकते। हालांकि, उनकी बयानबाजी ने कई बार उनकी पार्टी को असहज स्थिति में डाल दिया है। उनकी टिप्पणियां अक्सर उनकी “फायरब्रांड” छवि को बढ़ावा देती हैं, लेकिन कई बार बीजेपी को इनसे पल्ला झाड़ना पड़ता है।

निशिकांत दुबे के हालिया बयान: सुप्रीम कोर्ट पर हमला
21 अप्रैल 2025 को निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और तमिलनाडु के राज्यपाल पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? मस्जिदों के लिए आप कहते हैं कि उनसे संपत्ति के कागजात मांगना गलत है, लेकिन मंदिरों के लिए आप खुद ही कागज मांगते हैं। यह दोहरा मापदंड क्यों?” यह बयान तमिलनाडु से जुड़े बिलों को राज्यपाल द्वारा मंजूरी न देने और वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद आया था।
दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर “धार्मिक युद्ध भड़काने” का आरोप लगाया और कहा कि अगर शीर्ष अदालत को ही कानून बनाना है, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। इस बयान के कुछ घंटों बाद ही उन्होंने पूर्व चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी पर भी हमला बोला, उन्हें “मुस्लिम आयुक्त” कहकर संबोधित किया।
- निशिकांत दुबे के विवादास्पद बयान अक्सर उनकी व्यक्तिगत छवि को मजबूत करते हैं, लेकिन बीजेपी को कई बार इनसे दूरी बनानी पड़ती है।
- हाल के बयानों में सुप्रीम कोर्ट और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी पर टिप्पणियां शामिल हैं, जो कानूनी कार्रवाई की मांग उठा रही हैं।
- बीजेपी ने इन बयानों को दुबे की निजी राय बताया है, जिससे पार्टी की स्थिति असहज हो रही है।
- यह मामला राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर विवादास्पद है, जिसमें विभिन्न पक्षों की राय भिन्न हैं।
हाल के विवाद और कानूनी कार्रवाई
अप्रैल 2025 में, दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा, कहते हुए कि अगर कोर्ट कानून बनाएगा तो संसद बंद कर देनी चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया कि कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़का रहा है (India Today). इसके अलावा, उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी को “मुस्लिम आयुक्त” कहकर निशाना बनाया, जिससे विवाद और बढ़ा (The Times of India). इन बयानों के खिलाफ वकील अनस तनवीर ने अवमानना की कार्रवाई की मांग की है, जो कानूनी जटिलताओं को बढ़ा रही है।
बीजेपी की प्रतिक्रिया और राजनीतिक प्रभाव
बीजेपी ने स्पष्ट किया कि दुबे के बयान उनकी निजी राय हैं और पार्टी इनसे सहमत नहीं है (The Hindu). यह कदम पार्टी की छवि को बचाने की कोशिश दिखाता है, लेकिन दुबे की लोकप्रियता उनके समर्थकों के बीच बनी हुई है, जो उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा मानते हैं।
निशिकांत दुबे की राजनीतिक शैली
निशिकांत दुबे, जो बीजेपी के सांसद और झारखंड के गोड्डा से चार बार लोकसभा जीतने वाले नेता हैं , वो प्रायः अपनी आक्रामक और उत्तेजक बयानबाजी के लिए चर्चा में रहे हैं। उनकी टिप्पणियां अक्सर उनकी “फायरब्रांड” छवि को मजबूत करती हैं, लेकिन कई बार बीजेपी को इनसे दूरी बनानी पड़ती है। अप्रैल 2025 में उनके हाल के बयानों ने सुप्रीम कोर्ट और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी पर निशाना साधा, जिससे कानूनी और राजनीतिक विवाद पैदा हुआ। यह लेख उनके बयानों, बीजेपी की प्रतिक्रिया, और इससे जुड़े व्यापक प्रभावों की विस्तृत पड़ताल करता है।
निशिकांत दुबे का परिचय और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि
निशिकांत दुबे, अपनी सक्रियता और विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं। वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में चिकित्सा संस्थानों और हवाई अड्डे की स्थापना में योगदान का दावा करते हैं, जैसे एआईआईएमएस देवघर और देवघर हवाई अड्डा (Wikipedia). हालांकि, मार्च 2024 में उनके खिलाफ एक निजी मेडिकल कॉलेज पर कब्जा करने के आरोप में एफआईआर भी दर्ज हुई थी, जो उनकी छवि पर सवाल उठाता है।
दुबे की राजनीतिक शैली को उनके समर्थकों द्वारा “निडर” और “ध्रुवीकरण करने वाली” के रूप में वर्णित किया जाता है। उनके समर्थक, जैसे बीजेपी नेता मनीष जायसवाल, उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला योद्धा मानते हैं, खासकर महुआ मोइत्रा के “कैश-फॉर-क्वेरी” मामले में उनकी भूमिका के लिए। एक समर्थक ने कहा, “निशिकांत दुबे ने विपक्ष के भ्रष्टाचार को उजागर किया है, और वे जनता की आवाज हैं” (OneIndia).
हालांकि, उनके विरोधी, विशेष रूप से विपक्षी नेता, उन्हें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश करने वाला मानते हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मार्च 2025 में दुबे के “इस्लामीकरण” के आरोपों पर तंज कसते हुए कहा, “कैलिफोर्निया से ट्वीट करने वाले लोगों को झारखंड का दर्द नहीं समझ आएगा” (OneIndia).
हाल के विवाद: सुप्रीम कोर्ट और कुरैशी पर टिप्पणियां
अप्रैल 2025 में, दुबे ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान विवादास्पद बयान दिए। उन्होंने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट को कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए” (India Today). इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि कोर्ट देश में धार्मिक युद्ध भड़का रहा है और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर गंभीर आरोप लगाए।
इन बयानों के खिलाफ वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि को पत्र लिखकर आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की मांग की (India Today). तनवीर ने दुबे की टिप्पणियों को “गंभीर रूप से अपमानजनक और खतरनाक रूप से उत्तेजक” करार दिया, जो सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को कम करने का प्रयास है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में कहा कि याचिकाकर्ता को अटॉर्नी जनरल की सहमति लेनी होगी (India Today).
इसके अलावा, दुबे ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी पर निशाना साधा, उन्हें “मुस्लिम आयुक्त” कहकर बुलाया और झारखंड के संथालपरगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोटर बनाने का आरोप लगाया (The Times of India). यह टिप्पणी कुरैशी के वक्फ अधिनियम की आलोचना के जवाब में आई, जिसमें उन्होंने इसे मुस्लिम जमीनों पर कब्जा करने की साजिश बताया था।
बीजेपी की प्रतिक्रिया और राजनीतिक प्रभाव
बीजेपी ने दुबे के बयानों से तुरंत दूरी बनाई, पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने स्पष्ट किया कि ये बयान दुबे की निजी राय हैं और पार्टी इनसे सहमत नहीं है (The Hindu). नड्डा ने पार्टी नेताओं को ऐसी टिप्पणियां न करने की हिदायत भी दी। यह कदम पार्टी की छवि को बचाने की कोशिश दिखाता है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट जैसे संस्थान पर सवाल उठाए गए हैं।
हालांकि, दुबे के समर्थक उनकी निडरता की प्रशंसा करते हैं। एक बीजेपी नेता ने कहा, “निशिकांत दुबे ने विपक्ष और संस्थानों की गलतियों को उजागर किया है, और जनता उनकी बातों से सहमत है” (OneIndia). दूसरी ओर, विपक्षी नेता जैसे असदुद्दीन ओवैसी ने टिप्पणी की, “आप ट्यूबलाइट्स हैं,” यह दर्शाते हुए कि बीजेपी नेता जैसे दुबे एक पूर्वनिर्धारित एजेंडा का पालन करते हैं (The Times of India).
पिछले विवाद: एक लंबी सूची
दुबे का इतिहास विवादास्पद बयानों से भरा हुआ है, जो उनकी राजनीतिक शैली को दर्शाता है।
- कैश-फॉर-क्वेरी स्कैंडल: 2023 में, दुबे ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर नकदी के बदले सवाल पूछने का गंभीर आरोप लगाया, जिसके बाद लोकसभा की आचार समिति ने मोइत्रा को दोषी पाया और उनकी सदस्यता रद्द की गई (OneIndia). हालांकि, 2024 में मोइत्रा फिर से सांसद चुनी गईं, जो दुबे की रणनीति की सीमाओं को दर्शाता है।
- सोनिया गांधी और जॉर्ज सोरोस पर आरोप: दिसंबर 2024 में, दुबे ने राजीव गांधी फाउंडेशन और सोनिया गांधी पर जॉर्ज सोरोस से लिंक होने का आरोप लगाया, जिसमें कश्मीर की आजादी की वकालत करने वाले संगठनों का जिक्र था (OneIndia). कांग्रेस ने इन आरोपों को आधारहीन करार दिया।
- चीन से फंडिंग का दावा: अगस्त 2023 में, दुबे ने दावा किया कि राहुल गांधी और न्यूजक्लिक को चीन से धन मिला है, जिसे उन्होंने “भारत विरोधी माहौल” बनाने का प्रयास बताया (OneIndia). विपक्ष ने इसे सदन का ध्यान भटकाने की कोशिश बताया।
- अनुच्छेद 370 और झारखंड सरकार पर आरोप: दुबे ने 2015 में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके के लिए लोकसभा में सीटें आरक्षित करने की मांग की गई (Wikipedia). मार्च 2025 में, उन्होंने झारखंड सरकार पर “इस्लामीकरण” का आरोप लगाया, जिसे विपक्ष ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया।
प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
दुबे के बयानों का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव व्यापक है। उनकी टिप्पणियां जनता के एक वर्ग में गूंजती हैं, खासकर जो बीजेपी की कट्टर समर्थक हैं, लेकिन ये विपक्ष और न्यायपालिका के बीच तनाव भी बढ़ाते हैं। बीजेपी की दूरी बनाने की रणनीति यह दर्शाती है कि पार्टी उनकी बयानबाजी से होने वाले नुकसान को समझती है।
कानूनी स्तर पर, अवमानना की कार्रवाई की मांग उनके राजनीतिक करियर पर असर डाल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता को अटॉर्नी जनरल की सहमति लेनी होगी, जो इस मामले की दिशा तय करेगा (India Today).
दुबे के भविष्य के बारे में, यह स्पष्ट है कि उनकी रणनीति उन्हें सुर्खियों में रखेगी, लेकिन यह उनकी लंबी अवधि की राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। उनके समर्थक उन्हें निडर नेता मानते हैं, जबकि विरोधी उन्हें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का औजार मानते हैं। यह संतुलन उनकी राजनीतिक यात्रा को आकार देगा।
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दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।