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ToggleShimla Agreement 1972: भारत-पाकिस्तान संबंध, महत्व, और पाकिस्तान द्वारा रद्द करने की धमकी
Shimla Agreement – पाकिस्तान की हालिया धमकी के बाद शिमला समझौता 1972 एक बार फिर वैश्विक चर्चा का केंद्र बन गया है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शांति स्थापना के लिए हस्ताक्षरित यह समझौता दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखता है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित करने की घोषणा की। इस लेख में हम समझेंगे कि शिमला समझौता क्या है, इसका ऐतिहासिक और कूटनीतिक महत्व क्या है, और क्या पाकिस्तान इसे रद्द कर सकता है। साथ ही, इसके वर्तमान संदर्भ और नियंत्रण रेखा (LoC) पर प्रभाव को भी विश्लेषित करेंगे।

शिमला समझौता क्या है?(What is Shimla Agreement) ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध
Shimla Agreement 1971 के युद्ध की पृष्ठभूमि में अस्तित्व में आया, जो पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी अत्याचार किए, जिसके परिणामस्वरूप लाखों शरणार्थी भारत में आए। भारत ने मानवीय और रणनीतिक आधार पर हस्तक्षेप किया, और युद्ध में निर्णायक जीत हासिल की। लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया, और पूर्वी पाकिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र, बांग्लादेश, के रूप में उभरा।
इस युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था। भारत ने अपनी सैन्य जीत का लाभ उठाने के बजाय शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दी। इसी उद्देश्य से शिमला समझौता अस्तित्व में आया।

Shimla Agreement Was Signed Between Indira and Bhutto
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हस्ताक्षरित हुआ। इस पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए। भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पहुंचे थे। यह समझौता न केवल 1971 के युद्ध के परिणामों को संबोधित करने के लिए था, बल्कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को सामान्य करने और भविष्य में शांति सुनिश्चित करने का एक प्रयास था।
Shimla Agreement की मुख्य शर्तें और प्रावधान
शिमला समझौते में कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल थे, जो दोनों देशों के बीच संबंधों को परिभाषित करते हैं। ये प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. द्विपक्षीयता का सिद्धांत (Bilateralism)
समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि भारत और पाकिस्तान ने अपने सभी विवादों को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने पर सहमति जताई। इसका मतलब था कि संयुक्त राष्ट्र या किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को अस्वीकार किया गया। यह भारत की कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि पाकिस्तान अक्सर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करता रहा है।
2. बल प्रयोग पर प्रतिबंध
दोनों देशों ने वचन दिया कि वे एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य बल या हिंसा का उपयोग नहीं करेंगे। सभी विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने पर जोर दिया गया। यह प्रावधान क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए महत्वपूर्ण था।
3. नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना
1971 के युद्ध के बाद की स्थिति के आधार पर नियंत्रण रेखा (Line of Control) को परिभाषित किया गया, जिसे दोनों देशों ने मान्यता दी। यह रेखा जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा को चिह्नित करती है और आज भी प्रासंगिक है।
4. युद्धबंदियों और कब्जाई जमीन की वापसी
भारत ने युद्ध के दौरान कब्जाई गई 13,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि और 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को बिना किसी अतिरिक्त शर्त के वापस किया। यह भारत के शांति-पसंद दृष्टिकोण को दर्शाता है।
5. राजनयिक और व्यापारिक संबंधों की बहाली
समझौते में दोनों देशों के बीच व्यापार, संचार, और राजनयिक संबंधों को सामान्य करने पर सहमति बनी। इसका उद्देश्य लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देना और तनाव को कम करना था।
शिमला समझौते का महत्व: भारत की कूटनीतिक जीत
शिमला समझौता भारत के लिए एक ऐतिहासिक और कूटनीतिक उपलब्धि थी। इसके प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं:
कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाना
शिमला समझौते ने कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा घोषित किया, जिससे पाकिस्तान की संयुक्त राष्ट्र या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मध्यस्थता की मांग कमजोर हो गई। 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें जनमत संग्रह का उल्लेख था। लेकिन शिमला समझौते ने इसकी प्रासंगिकता को समाप्त कर दिया, क्योंकि पाकिस्तान ने द्विपक्षीयता को स्वीकार किया।
भारत की शांति-पसंद छवि
पाकिस्तान की हार और 93,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण के बावजूद, भारत ने उदारता दिखाई। युद्धबंदियों की रिहाई और कब्जाई जमीन की वापसी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की शांति-पसंद छवि को मजबूत किया।
क्षेत्रीय स्थिरता
समझौते ने दक्षिण एशिया में दो परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच सशस्त्र संघर्ष की संभावना को कम किया। नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम और सैन्य तनाव को कम करने के प्रोटोकॉल ने क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दिया।
पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते का उल्लंघन
शिमला समझौते के बावजूद, पाकिस्तान ने बार-बार इसकी शर्तों का उल्लंघन किया है। कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना
पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र, इस्लामी सहयोग संगठन (OIC), और अन्य वैश्विक मंचों पर बार-बार उठाया, जो द्विपक्षीयता के सिद्धांत का उल्लंघन है। हालांकि, उसे हर बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन नहीं मिला।
1999 का कारगिल युद्ध
1999 में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध छेड़कर शिमला समझौते के प्रावधानों को तोड़ा। यह युद्ध तब हुआ जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सामान्य करने के लिए लाहौर बस सेवा जैसी पहल चल रही थीं। इस युद्ध ने पाकिस्तान की विश्वसनीयता को और कम किया।
आतंकवाद को प्रायोजित करना
1989 से पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को प्रायोजित किया है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को समर्थन देकर पाकिस्तान ने सीमा पर घुसपैठ और आतंकी हमलों को बढ़ावा दिया, जो समझौते के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांत के खिलाफ है।
2025 में शिमला समझौते की प्रासंगिकता
2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव फिर से बढ़ गया है। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने, वाघा बॉर्डर को बंद करने, और अन्य कूटनीतिक कदम उठाए। जवाब में, पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित करने की घोषणा की और भारतीय विमानों के लिए अपनी हवाई सीमा बंद कर दी।
विशेषज्ञों का दृष्टिकोण
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) विनोद भाटिया के अनुसार, शिमला समझौता भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत था, क्योंकि इसने कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों से बाहर रखा। हालांकि, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की हालिया कार्रवाइयां उसकी हताशा को दर्शाती हैं, क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन हासिल करने में विफल रहा है।
विदेश नीति विश्लेषक हैप्पीमोन जैकब ने कहा कि शिमला समझौता आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह नियंत्रण रेखा की वैधानिकता और द्विपक्षीय वार्ता का आधार प्रदान करता है। लेकिन पाकिस्तान द्वारा इसे निलंबित करने की धमकी क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है।

क्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?
तकनीकी रूप से, कोई भी देश किसी संधि से खुद को अलग कर सकता है। हालांकि, रक्षा विशेषज्ञ प्रकाश मेनन के अनुसार, ऐसा करने से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर गहरा असर पड़ेगा। यदि पाकिस्तान समझौते को रद्द करता है, तो वह यह स्वीकार करेगा कि कश्मीर मुद्दे को बातचीत से हल करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इससे नियंत्रण रेखा पर संघर्ष की संभावना बढ़ सकती है, और दोनों देशों की सेनाएं अधिक आक्रामक हो सकती हैं।
शिमला समझौते के रद्द होने के संभावित परिणाम
द्विपक्षीय वार्ता पर प्रभाव
शिमला समझौता रद्द होने से भारत और पाकिस्तान के बीच सभी द्विपक्षीय वार्ताएं रुक सकती हैं। इससे कश्मीर और अन्य मुद्दों पर संवाद की संभावना समाप्त हो सकती है।
नियंत्रण रेखा पर तनाव
समझौते में नियंत्रण रेखा का पालन दोनों देशों की जिम्मेदारी है। यदि यह रद्द होता है, तो LoC पर सैन्य तनाव और संघर्ष की आशंका बढ़ सकती है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तनाव
पाकिस्तान कश्मीर को फिर से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन शिमला समझौते की अनुपस्थिति में भारत यह तर्क दे सकता है कि वह किसी बंधन में नहीं है। इससे वैश्विक मंचों पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है।
भरोसे की कमी
युद्धबंदियों की रिहाई और संघर्ष समाधान के लिए भरोसे की कमी हो सकती है, जो भविष्य के समझौतों को जटिल बना सकती है।
निष्कर्ष
शिमला समझौता 1972 भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। इसने कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाकर भारत की कूटनीतिक जीत सुनिश्चित की और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दिया। हालांकि, पाकिस्तान ने बार-बार इसकी शर्तों का उल्लंघन किया, और 2025 में पहलगाम हमले के बाद इसे निलंबित करने की धमकी दी। अभी के परिस्थिति में भारत भू राजनीतिक रूप से काफी मजबूत है । और इसका सायद ही कोई प्रभाव भारत पर पड़े।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि समझौते को रद्द करना पाकिस्तान के लिए आत्मघाती हो सकता है, क्योंकि इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता कम होगी और नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ेगा। भारत को इस स्थिति में अपनी कूटनीतिक और सैन्य रणनीति को और मजबूत करने की आवश्यकता है। शिमला समझौता आज भी भारत-पाकिस्तान संबंधों का एक महत्वपूर्ण आधार है, और इसे बनाए रखना दोनों देशों के हित में है।
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दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।