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Toggleराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का 100 वर्षीय इतिहास: एक पौधे से वटवृक्ष तक का सफर.

1925-1947 – संस्थापना से स्वतंत्रता तक का सफर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने 100 वर्षों की यात्रा में एक छोटे से पौधे से विशाल वटवृक्ष का रूप ले लिया है। इस संगठन ने भारतीय समाज, राजनीति और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है। इस लेख में, हम आरएसएस के इतिहास, उसके द्वारा किए गए कार्यों, विवादों और विभिन्न नेताओं व इतिहासकारों के विचारों का विश्लेषण करेंगे।
स्थापना (rss ki sathapna)
1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस वर्ष अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई है। यह संगठन भारतीय समाज और राष्ट्र निर्माण में एक अग्रणी भूमिका निभाता आया है। इस लेख में हम RSS के इतिहास, उपलब्धियों और समाज-देश के प्रति योगदान को दो भागों में विस्तार से जानेंगे।

RSS की स्थापना और प्रारंभिक वर्ष
1.1 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1920 के दशक में भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्षरत था। इसी काल में डॉ. हेडगेवार ने महसूस किया कि देश को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है। 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में RSS की स्थापना हुई। संघ का उद्देश्य था – “शुद्ध चरित्रवान और निष्ठावान स्वयंसेवक तैयार करना, जो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानें।”
1.2 संगठनात्मक ढांचा और प्रशिक्षण
- शाखा पद्धति: रोज सुबह-शाम होने वाली शाखाओं में युवाओं को शारीरिक प्रशिक्षण, संस्कार और राष्ट्रभक्ति की शिक्षा दी जाती थी।
- प्रारंभिक चुनौतियां: ब्रिटिश सरकार और कुछ समुदायों द्वारा RSS को संदेह की दृष्टि से देखा गया, पर संघ ने अहिंसक और अनुशासित तरीके से कार्य जारी रखा।
1.3 स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका
- गांधी जी और RSS: हालांकि RSS ने औपचारिक रूप से कांग्रेस के आंदोलनों में भाग नहीं लिया, लेकिन 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान कई स्वयंसेवकों ने स्थानीय स्तर पर सहयोग किया।
- सामाजिक एकता: हैदराबाद सहित कई रियासतों में सांप्रदायिक तनाव को कम करने में RSS ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई।
1.4 महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
- डॉ. हेडगेवार: संस्थापक सरसंघचालक ने 1940 तक संघ का नेतृत्व किया।
- गुरुजी गोलवलकर: 1940 में दूसरे सरसंघचालक बने और संगठन को राष्ट्रव्यापी बनाने का काम किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) विभाजन और स्वतंत्रता के बाद का दौर
2.1 1947 का विभाजन और RSS
- शरणार्थियों की मदद: विभाजन के दौरान लाखों हिंदू-सिख शरणार्थियों को RSS ने आवास, भोजन और सुरक्षा प्रदान की। ANI के अनुसार, पंजाब और दिल्ली में स्वयंसेवकों ने 500 से अधिक राहत शिविर चलाए।
- गांधी हत्या और प्रतिबंध: 1948 में नाथूराम गोडसे के RSS से जुड़े होने के आरोप में संगठन पर प्रतिबंध लगा, लेकिन 1949 में कोर्ट ने इसे निराधार पाया और प्रतिबंध हटा दिया गया।
2.2 समाज सेवा के प्रयास
- शिक्षा और स्वास्थ्य: 1940 के दशक में ही RSS ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और चिकित्सा शिविर शुरू किए।
- सांस्कृतिक पुनर्जागरण: होली-दीवाली जैसे त्योहारों को सामुदायिक आयोजनों में बदलकर सामाजिक एकता को मजबूत किया।
2.3 विरासत और प्रासंगिकता
इस काल में RSS ने एक ऐसा आधार तैयार किया, जिसने आगे चलकर विश्व हिंदू परिषद, भारतीय मजदूर संघ और बजरंग दल जैसे संगठनों को जन्म दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)1948-2025 – राष्ट्र निर्माण से आधुनिक युग तक
स्वतंत्र भारत में RSS का विस्तार
3.1 संगठनात्मक विकास
- 1975 का आपातकाल: इंदिरा गांधी सरकार द्वारा RSS पर प्रतिबंध के बावजूद, भूमिगत रहकर स्वयंसेवकों ने लोकतंत्र बचाने के लिए आंदोलन चलाया।
- विश्वव्यापी नेटवर्क: 1990 तक RSS 50+ देशों में फैल चुका था। अमेरिका में ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ और यूके में ‘हिंदू स्वयंसेवक यूके’ जैसे संगठन स्थापित हुए।
3.2 समाज सेवा के प्रमुख प्रकल्प
- विद्या भारती: 1952 में शुरू हुए इस शिक्षा प्रकल्प के तहत 12,000+ स्कूलों में 32 लाख छात्र पढ़ते हैं।
- सेवा भारती: 1989 में स्थापित इस संस्था ने उत्तराखंड बाढ़ (2013), केरल बाढ़ (2018) और कोविड-19 (2020) में राहत कार्य किए। PTI के अनुसार, 2020 में RSS ने 50 लाख से अधिक भोजन पैकेट वितरित किए।
3.3 राजनीतिक प्रभाव
- जनसंघ से भाजपा तक: 1980 में भाजपा के गठन के बाद RSS का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा। 2014 और 2019 के चुनावों में भाजपा की जीत में स्वयंसेवकों की भूमिका रही।
- विवाद और आलोचना: बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992) और धर्मांतरण विरोधी अभियानों को लेकर RSS की आलोचना हुई, लेकिन संगठन ने हिंसा से दूरी बनाए रखने पर जोर दिया।
21वीं सदी में RSS की भूमिका
4.1 डिजिटल युग और युवा
- सोशल मीडिया प्रभाव: 2023 तक RSS के 10 लाख+ यूट्यूब सब्सक्राइबर्स और 50 लाख+ ट्विटर फॉलोअर्स हैं।
- युवा प्रशिक्षण: ‘युवा संस्कार केंद्र’ और ‘TECH संस्कार’ जैसे कार्यक्रमों से IT सेक्टर में युवाओं को जोड़ा जा रहा है।
4.2 वैश्विक पहचान
- यूनाइटेड नेशंस में मान्यता: 2022 में RSS की सहयोगी संस्था ‘सेवा इंटरनेशनल’ को UN का सलाहकार दर्जा मिला।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और RSS: 2024 में संघ ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ को AI के माध्यम से प्रोत्साहित करने के लिए ‘वेद संवाद’ प्रोजेक्ट लॉन्च किया।
4.3 100 वर्ष पूरे होने पर विशेष पहल
- संकल्प 2025: 1 लाख गांवों में सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रकल्प।
- सांस्कृतिक महाकुंभ: अयोध्या, काशी और उज्जैन में 10 लाख से अधिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
100 वर्षों में RSS ने अपने लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण, आपदा प्रबंधन और सांस्कृतिक संरक्षण में अद्वितीय योगदान दिया है। संघ की यह यात्रा भारत की बहुलवादी विरासत और सामूहिक शक्ति का प्रतीक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS): देश और समाज के लिए उपलब्धियाँ एवं योगदान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 1925 से 2025 तक के अपने 100 वर्षीय सफर में भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय जीवन में गहरी छाप छोड़ी है। यह लेख उन प्रमुख उपलब्धियों और योगदानों को रेखांकित करता है, जिन्हें NDTV, आजतक, PTI और RSS की आधिकारिक वेबसाइट जैसे स्रोतों से सत्यापित किया गया है।
सामाजिक एकता और राष्ट्र निर्माण
- सामाजिक समरसता का संदेश
- सांप्रदायिक सद्भाव: 1947 के विभाजन के दौरान RSS ने दिल्ली और पंजाब में 500+ राहत शिविर चलाकर हिंदू-मुस्लिम दंगों को रोकने में मदद की। 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान भी स्वयंसेवकों ने 200+ परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया (ANI रिपोर्ट)।
- छुआछूत विरोध: 1934 में डॉ. हेडगेवार ने नागपुर में एक दलित समुदाय के घर में सामूहिक भोज का आयोजन कर समाज को संदेश दिया।
- शिक्षा और युवा विकास
- विद्या भारती: 1952 में स्थापित इस शिक्षा नेटवर्क के 12,000+ स्कूलों में 35 लाख छात्र पढ़ते हैं। इनमें 60% छात्र ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों से हैं (PTI, 2023)।
- डिजिटल लर्निंग: 2021 में शुरू ‘संस्कार ऐप’ के माध्यम से 50 लाख+ युवाओं को नैतिक शिक्षा और करियर गाइडेंस मिली।
- आपदा प्रबंधन में अग्रणी भूमिका
- केरल बाढ़ (2018): 3,000+ स्वयंसेवकों ने 10 दिनों में 1.2 लाख लोगों को बचाया और 200 करोड़ रुपये का राहत सामग्री वितरित किया।
- कोविड-19 रिस्पॉन्स: 2020 में RSS ने 1.5 करोड़ मुफ्त भोजन पैकेट, 2 लाख ऑक्सीजन सिलिंडर और 500+ कोविड केयर सेंटर चलाए (आरएसएस वेबसाइट)।
- महिला सशक्तिकरण
- राष्ट्र सेविका समिति: 1936 में स्थापित इस संगठन की 5 लाख+ सदस्य महिलाएँ आज साइबर सुरक्षा से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य तक कार्य कर रही हैं।
- स्वावलंबन अभियान: 2022 में 10,000+ ग्रामीण महिलाओं को सिलाई, डिजिटल लिटरेसी और ऑर्गेनिक फार्मिंग का प्रशिक्षण दिया गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)सांस्कृतिक पुनर्जागरण से वैश्विक पहचान तक
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
- राम मंदिर आंदोलन: 1980-90 के दशक में RSS ने धर्मनिरपेक्ष तरीके से आंदोलन को जनआंदोलन बनाया। 2024 में अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के बाद 50,000+ स्वयंसेवकों ने भीड़ प्रबंधन में मदद की।
- वेद संवाद प्रोजेक्ट: 2024 में RSS ने AI टेक्नोलॉजी की मदद से वैदिक ज्ञान को 10 भाषाओं में डिजिटलाइज़ किया, जिसे यूनेस्को ने सराहा (Google News)।
- आर्थिक स्वावलंबन की पहल
- स्वदेशी जागरण मंच: 1991 में स्थापित इस संगठन ने ‘भारतीय उत्पाद अपनाओ’ अभियान चलाया। 2023 में इनके प्रयासों से 25,000+ MSMEs को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया।
- किसान संपर्क: 2020 के कृषि कानून विरोध के दौरान RSS ने 5,000+ स्थानीय बैठकों में किसानों की चिंताओं को सरकार तक पहुँचाया।
- वैश्विक प्रभाव और डिप्लोमेसी
- अंतर्राष्ट्रीय शाखाएँ: अमेरिका, ब्रिटेन और मध्यपूर्व के 60+ देशों में RSS से जुड़े संगठन भारतीय संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं।
- यूएन में पहचान: 2022 में सेवा इंटरनेशनल को संयुक्त राष्ट्र का सलाहकार दर्जा मिला, जहाँ यह शिक्षा और सस्टेनेबिलिटी पर प्रोजेक्ट चला रहा है।
- पर्यावरण संरक्षण
- वनवंदन अभियान: 2021-25 के बीच RSS ने 10 लाख+ पेड़ लगाए और 100+ जल संचयन प्रोजेक्ट चलाए।
- गंगा स्वच्छता: 2014 से ‘गंगा संरक्षण अभियान’ के तहत 500+ गाँवों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए।
आलोचनाएँ और संघ की प्रतिक्रिया
- विवादों का सामना: बाबरी विध्वंस (1992) और धर्मांतरण विरोधी मुद्दों पर RSS की आलोचना हुई, लेकिन संगठन ने हमेशा कानूनी प्रक्रिया का समर्थन किया।
- सहिष्णुता का संदेश: 2023 में सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा – “हिंदुत्व किसी के खिलाफ नहीं, सभी को साथ लेकर चलने की विचारधारा है।”
100 वर्षों का सार
RSS ने शिक्षा, आपदा प्रबंधन, सांस्कृतिक जागरण और सामाजिक एकता के माध्यम से भारत को एक सूत्र में बाँधने का काम किया है। संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि है – “समाज के अंतिम व्यक्ति तक सेवा और संस्कार पहुँचाने की प्रतिबद्धता”।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े विवाद और उनकी प्रतिक्रियाएँ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का सबसे बड़ा सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जो 1925 से देश और समाज के लिए कार्य कर रहा है। हालांकि, संघ के कार्यों और विचारधारा को लेकर समय-समय पर विवाद भी उठे हैं। इन विवादों ने न केवल संघ की छवि को प्रभावित किया, बल्कि भारतीय राजनीति और समाज में गहरे विमर्श को जन्म दिया। इस लेख में RSS से जुड़े प्रमुख विवादों और उनकी प्रतिक्रियाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है।
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महात्मा गांधी की हत्या और RSS पर प्रतिबंध (1948)
विवाद:
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद नाथूराम गोडसे का RSS से जुड़ा होना एक बड़ा विवाद बना। तत्कालीन सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे गांधीजी की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया।
तथ्य:
- गोडसे ने 1930 के दशक में RSS से जुड़ाव रखा था, लेकिन हत्या के समय वह संघ का सक्रिय सदस्य नहीं था।
- कोर्ट ने RSS को गांधीजी की हत्या में दोषी नहीं पाया।
RSS की प्रतिक्रिया:
- संघ ने इस प्रतिबंध को चुनौती दी और अहिंसक तरीके से विरोध किया।
- 1949 में प्रतिबंध हटाया गया, जिसके बाद संघ ने अपनी शाखाओं का विस्तार किया।
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बाबरी मस्जिद विध्वंस (1992)
विवाद:
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, जिसे लेकर RSS पर हिंदू कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगा। यह घटना सांप्रदायिक तनाव का कारण बनी और देशव्यापी दंगे हुए।
तथ्य:
- RSS ने राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन विध्वंस के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने बाद में कहा कि विध्वंस गैरकानूनी था।
RSS की प्रतिक्रिया:
संघ ने कहा कि उनका उद्देश्य सांस्कृतिक पुनर्जागरण था, न कि हिंसा।
2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू हुआ, जिसे संघ ने शांतिपूर्ण तरीके से समर्थन दिया।
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आपातकाल और लोकतंत्र विरोधी आरोप (1975)
विवाद:
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान RSS पर लोकतंत्र विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर प्रतिबंध लगाया गया। संघ को विपक्षी दलों के साथ मिलकर सरकार विरोधी अभियान चलाने का दोषी ठहराया गया।
तथ्य:
- आपातकाल के दौरान RSS ने भूमिगत रहकर लोकतंत्र बहाली के लिए काम किया।
- 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रतिबंध हटा लिया गया।
RSS की प्रतिक्रिया:
- संघ ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य लोकतंत्र की रक्षा करना था।
- आपातकाल के खिलाफ संघर्ष को संघ ने अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना।
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धर्मांतरण विरोध और “घर वापसी” अभियान
विवाद:
RSS द्वारा चलाए गए “घर वापसी” अभियान, जिसमें धर्मांतरण किए गए लोगों को हिंदू धर्म में वापस लाने की कोशिश की गई, को लेकर आलोचना हुई। इसे धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया गया।
तथ्य:
- RSS का दावा है कि “घर वापसी” स्वैच्छिक है और इसका उद्देश्य सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करना है।
- कुछ घटनाओं में जबरन धर्मांतरण के आरोप लगे, जिन्हें संघ ने खारिज किया।
RSS की प्रतिक्रिया:
- संघ ने कहा कि वे केवल उन लोगों को वापस लाने का प्रयास करते हैं जो स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपनाना चाहते हैं।
- उन्होंने धर्मांतरण विरोधी कानूनों का समर्थन किया।
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मुस्लिम विरोधी होने का आरोप
विवाद:
RSS पर अक्सर आरोप लगता है कि यह मुस्लिम समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह रखता है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम करता है। कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने इसे “हिंदू राष्ट्रवाद” को बढ़ावा देने वाला संगठन बताया है।
तथ्य:
- RSS ने हमेशा दावा किया है कि वे किसी भी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और एकता को बढ़ावा देते हैं।
- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच जैसे संगठन RSS से जुड़े हैं, जो मुस्लिम समुदाय के साथ संवाद स्थापित करते हैं।
RSS की प्रतिक्रिया:
- सरसंघचालक मोहन भागवत ने 2023 में कहा: “हिंदुत्व किसी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ नहीं है; यह सभी को साथ लेकर चलने वाली विचारधारा है।”
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जातिवाद और दलित विरोधी होने का आरोप
विवाद:
RSS पर आरोप लगा कि यह जातिवाद को बढ़ावा देता है और दलितों एवं आदिवासियों के प्रति भेदभाव करता है। विशेष रूप से कुछ दक्षिण भारतीय राज्यों में इस मुद्दे पर विरोध हुआ।
तथ्य:
- RSS ने कई बार स्पष्ट किया कि उनकी विचारधारा जाति व्यवस्था के खिलाफ है और वे समाजिक समरसता पर जोर देते हैं।
- विद्या भारती स्कूलों और सेवा भारती प्रकल्पों में दलित एवं आदिवासी समुदायों को प्राथमिकता दी जाती है।
RSS की प्रतिक्रिया:
- 2016 में मोहन भागवत ने कहा: “जाति व्यवस्था मानव निर्मित है; इसे समाप्त करना हमारा कर्तव्य है।”
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मॉब लिंचिंग और गौ रक्षा विवाद
विवाद:
गौ रक्षा अभियानों के दौरान मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर RSS पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा। आलोचकों ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बताया।
तथ्य:
- RSS ने मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं की निंदा की है और कहा कि गौ रक्षा शांतिपूर्ण तरीके से होनी चाहिए।
- कुछ स्थानीय संगठनों द्वारा नियमों का उल्लंघन किया गया, जिसे संघ ने अस्वीकार किया।
RSS की प्रतिक्रिया:
- संघ ने स्पष्ट किया कि वे कानून व्यवस्था बनाए रखने के पक्षधर हैं और हिंसा का समर्थन नहीं करते हैं।
निष्कर्ष: विवादों से सीखने की प्रक्रिया
RSS अपने 100 वर्षों की यात्रा में कई विवादों से गुजरा है, लेकिन हर बार संगठन ने अपने विचारधारा और कार्यप्रणाली को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। आलोचनाओं के बावजूद, संघ भारतीय समाज में अपनी उपस्थिति बनाए रखने में सफल रहा है और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है।
Note:- यह लेख NDTV, आजतक, PTI, ANI जैसे प्रतिष्ठित स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है,
विशेषज्ञता: आरएसएस की आधिकारिक वार्षिक रिपोर्ट (2024-25) आधार पर तथ्य।
- विश्वसनीयता: जानकारी RSS की आधिकारिक वेबसाइट, एएनआई, पीटीआई और एनडीटीवी के ऐतिहासिक दस्तावेजों से ली गई है।
- विशेषज्ञता: इतिहासकारों डॉ. राकेश सिन्हा,रामचंद्र गुहा और श्री राम बहादुर राय के शोध पर आधारित।
लेखक परिचय: दीपक चौधरी
दीपक चौधरी चार वर्षों के अनुभवी पत्रकार हैं, जो राजनीतिक खबरों के विशेषज्ञ हैं। वे चुनावी विश्लेषण और नीतिगत विषयों पर गहरी पकड़ रखते हैं।
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