अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे भारतीय – ‘मोदी ट्रम्प के दोस्ती’ का कड़वा सच!

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अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे भारतीय – “घर वापसी” योजना का नया संस्करण!

 

अमेरिका से लौटा पहला जत्था – ‘स्वागत है’ या ‘अफसोस’?

ट्रंप ने वादा किया था कि वह अमेरिका को “महान” बनाएंगे, लेकिन हमें क्या पता था कि इसमें भारतीयों की ‘घर वापसी’ भी शामिल होगी! अमेरिका से अवैध प्रवासियों को निकालने की इस ‘सदाशयता’ का पहला बड़ा जत्था भारत लौट चुका है।

अब सोचिए, किसी ने लाखों रुपये खर्च किए, दलालों की जेबें भरीं, जान जोखिम में डालकर जंगलों, नदियों और बॉर्डर पार किए, और फिर हाथ-पैर बंधवाकर वापस उसी देश में पहुंचा दिया, जहां से भागने की इतनी मेहनत की थी! वाकई, यह ‘ग्लोबल टूरिज्म’ का नया युग है – “जाओ अमेरिका, फोटो खिंचवाओ और बंधकर वापस आओ!”

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ट्रंप की “सख्त” इमिग्रेशन नीति – गेस्ट हाउस से पहले ही निकाल दिया!

डोनाल्ड ट्रंप साहब जब से चुनावी रैलियों में गरज रहे थे कि वे अवैध प्रवासियों को बाहर करेंगे, तब ही समझ जाना चाहिए था कि “अतिथि देवो भव” सिर्फ भारतीयों की भावना है, ट्रंप की नहीं!

पिछले साल अमेरिकी सेना ने 14,000 बार भारतीयों को अमेरिका में घुसते हुए पकड़ा – यानी भारत के युवा वहां नौकरी ढूंढने जा रहे थे, और अमेरिका उन्हें ‘क्रिमिनल’ की तरह ट्रीट कर रहा था। न्यूयॉर्क टाइम्स का लेख भी यही कहता है कि भारत से आने वाले प्रवासियों की संख्या 2018-19 में 8,027 थी, लेकिन 2022-23 में 96,917 तक पहुंच गई! भाई, ऐसा क्या जादू है अमेरिका में, जो सबको वहां जाना है?


अमेरिका ने भारतीयों को पैकेजिंग कर लौटाया – ‘स्पेशल डिलीवरी फॉर इंडिया’

सोचिए, अमेरिका ने 104 भारतीयों को वापस भेजा, और वह भी ‘स्पेशल पैकिंग’ में – पुरुषों के हाथ-पैर जंजीरों में बांधकर! अमेरिकी सेना के विमानों में भेजा गया, यानी ‘इकोनॉमी क्लास’ की भी इज्जत नहीं बची। अब यह नई ‘फ्लाइट सर्विस’ है – “अमेरिका से सीधे भारत, बिना किसी खर्च के, सिर्फ हाथ-पैर बांधकर!”

विदेश मंत्री एस. जयशंकर साहब कह रहे हैं कि महिलाओं और बच्चों को नहीं बांधा गया था। वाह! मतलब, बाकी लोग जैसे ‘मूका कुश्ती’ के चैंपियन थे, जो विमान में लड़ाई कर देते?


‘मेहमाननवाजी’ पर उठे सवाल – कांग्रेस और विपक्ष ने सरकार को घेरा

 

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अब जब इतनी बड़ी ‘घर वापसी’ हुई, तो भारतीय राजनीति का गर्म होना लाजिमी था। संसद में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने सरकार को घेर लिया। विपक्ष का सवाल था कि अगर ट्रंप को भारतीय दोस्त नरेंद्र मोदी इतना पसंद हैं, तो क्या दोस्ती सिर्फ इवेंट मैनेजमेंट तक सीमित थी?

एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने भी सरकार को घेरते हुए कहा, “अगर यह दोस्ती भारतीय नागरिकों के काम नहीं आएगी, तो यह किस काम की दोस्ती?” वाकई, यह प्रश्न गंभीर है, और इसका उत्तर अमेरिका जाने के इच्छुक हज़ारों युवा जानना चाहेंगे।


‘अमेरिकन ड्रीम’ बनाम ‘इंडियन रियलिटी’

युवा भारतीय अमेरिका इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि वे वहां नौकरी और अच्छी ज़िंदगी की तलाश में हैं। लेकिन जब वहां पहुंचकर हाथ-पैर बंधकर लौटना पड़े, तो क्या इसे “अमेरिकन ड्रीम” कहा जाए या “इंडियन रियलिटी” का भयानक आईना?

CNN का कहना है कि भारत में बेरोजगारी के कारण युवा खतरनाक रास्तों से होकर अमेरिका पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। यानी, भारत सरकार के लिए यह चेतावनी है कि सिर्फ “विकास की गंगा” बहाने की बात करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि असल में रोजगार देना होगा, ताकि युवा देश छोड़ने को मजबूर न हों।


निष्कर्ष – ‘घर वापसी’ का दर्द और सबक

अमेरिका की इस ‘मेहमाननवाजी’ से भारत को कई सबक मिलते हैं:

  1. “अमेरिका में एंट्री आसान नहीं” – अवैध तरीके से वहां जाना अब पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है।
  2. “दोस्ती सिर्फ फोटो तक” – ट्रंप-मोदी की दोस्ती सिर्फ इवेंट्स तक सीमित रही, आम भारतीय को इसका कोई फायदा नहीं मिला।
  3. “बेरोजगारी की सच्चाई” – अगर भारत में रोजगार के बेहतर अवसर होते, तो युवा जान जोखिम में डालकर अमेरिका जाने की सोचते ही नहीं।
  4. “सरकार को जिम्मेदारी लेनी होगी” – अगर अवैध प्रवासन रोकना है, तो युवाओं के लिए देश में ही बेहतर अवसर पैदा करने होंगे।

अब सवाल यह है कि सरकार अगली बार ट्रंप से मिलने पर उनसे दोस्ती के बदले भारतीय युवाओं के लिए कोई बेहतर डील मांगती है या फिर सिर्फ “हाउडी मोदी” जैसे इवेंट्स में खुश होती रहती है?

आपकी राय क्या है? क्या भारत को अपने प्रवासियों के लिए बेहतर नीति बनानी चाहिए? या फिर युवाओं को “सही तरीके” से अमेरिका भेजने का कोई नया जुगाड़ खोजना होगा? कमेंट करके बताइए!

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