भाग 3: कृष्ण द्वार की पहेली
भूमिका
तिलिस्मी रहस्य का पर्दा धीरे-धीरे उठ रहा था।
वीरेंद्र, चंद्रकांता और तेज प्रताप के सामने अब “कृष्ण द्वार” था— एक प्राचीन गुफा, जिसके बारे में कहा जाता था कि इसमें एक तिलिस्मी खज़ाना और रहस्य छुपा था।
लेकिन इससे पहले कि वे उस रहस्य को जान पाते, भयानक सिंह और उसकी गैंग उनके सामने खड़ी थी।
अब सवाल था—
✅ क्या यह सिर्फ एक गुफा थी या किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा?
✅ कौन असली दुश्मन था?
✅ क्या तिलिस्म सिर्फ एक मिथक था, या इसमें कुछ और छुपा था?
अध्याय 1: एक गुप्त सुरंग की ओर
“हमें अंदर जाना होगा, लेकिन यह आसान नहीं होगा।” वीरेंद्र ने गुफा के सामने खड़े होकर कहा।
कृष्ण द्वार, जो बाहर से एक सामान्य गुफा की तरह दिखता था, लेकिन अंदर एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा था।
तेज प्रताप ने दीवार पर एक प्राचीन शिलालेख पढ़ा—
“जो भी इस द्वार को पार करेगा, उसे अपने अतीत का सामना करना होगा!”
चंद्रकांता ने हैरानी से कहा, “क्या इसका मतलब यह है कि जो यहाँ जाएगा, वह अपनी पहचान खो देगा?”
“नहीं,” वीरेंद्र ने जवाब दिया। “इसका मतलब है कि यह गुफा किसी मानसिक या शारीरिक परीक्षा से कम नहीं होगी।”
अध्याय 2: गुफा में पहला कदम
जैसे ही वीरेंद्र, चंद्रकांता और तेज प्रताप गुफा में दाखिल हुए, चारों ओर घना अंधेरा छा गया।
“रुको!” भुवन नाथ ने कहा। “हम यह कैसे भूल सकते हैं कि यह जगह जालों से भरी हो सकती है?”
वीरेंद्र ने जेब से एक इन्फ्रारेड लाइट निकाली और उसे चारों ओर घुमाया।
जैसे ही रोशनी फैली, चारों तरफ संवेदनशील लेज़र बीम चमक उठे।
“अगर हमने एक भी गलत कदम बढ़ाया, तो यह फंदा सक्रिय हो जाएगा,” तेज ने कहा।
अध्याय 3: पहले जाल का सामना
“तो हमें क्या करना चाहिए?” चंद्रकांता ने पूछा।
“ऐयारी!” तेज मुस्कुराया।
तेज प्रताप ने अपने बैग से एक छोटे आकार का मिरर निकाला और उसे लेज़र के सामने सेट कर दिया।
“यह पुराने ऐयारों की चाल है,” तेज ने कहा। “अगर हम प्रकाश को सही दिशा में मोड़ दें, तो यह लेज़र निष्क्रिय हो जाएगा।”
कुछ ही सेकंड में, सभी लेज़र निष्क्रिय हो गए।
“अब हमें तेज़ी से बढ़ना होगा,” वीरेंद्र ने कहा। “हमें पता नहीं कि और कौन से खतरे इंतजार कर रहे हैं।”
अध्याय 4: रहस्यमयी दरवाज़ा
गुफा में चलते हुए, वे एक विशाल पत्थर के दरवाज़े के सामने पहुँचे।
दरवाज़े के ऊपर संस्कृत में कुछ लिखा था—
“जो भी इस दरवाज़े को पार करना चाहता है, उसे यह साबित करना होगा कि वह योग्य है।”
“अब इसका क्या मतलब हुआ?” चंद्रकांता ने पूछा।
“मतलब कि यह सिर्फ ताकत से नहीं खुलेगा। हमें कुछ और करना होगा,” वीरेंद्र ने कहा।
तभी, उनके सामने एक पुराना लकड़ी का बक्सा दिखाई दिया।
“हो सकता है कि इसके अंदर कुछ हो!”
जब भुवन नाथ ने बक्से को खोला, तो उसके अंदर तीन अलग-अलग रंगों के पत्थर थे।
“हमें इनका उपयोग दरवाजे को खोलने के लिए करना होगा,” तेज ने अनुमान लगाया।
अध्याय 5: तीन पत्थरों की पहेली
दरवाज़े के ठीक सामने तीन छोटे-छोटे गोल खांचे बने हुए थे।
“मुझे लगता है कि हमें इन पत्थरों को इन खाँचों में सही क्रम में डालना होगा,” चंद्रकांता ने कहा।
“लेकिन सही क्रम क्या है?”
तभी वीरेंद्र ने ध्यान दिया कि दरवाज़े पर लिखी संस्कृत की पंक्तियों के नीचे एक गुप्त संदेश लिखा हुआ था—
“नीला सत्य का प्रतीक है, हरा जीवन का और लाल बलिदान का।”
“इसका मतलब हमें पहले नीला, फिर हरा, फिर लाल रखना होगा।”
जैसे ही तीनों पत्थर सही क्रम में रखे गए, दरवाजा धीरे-धीरे खुलने लगा!
अध्याय 6: पहला रहस्य खुला!
दरवाज़ा खुलते ही सामने एक बड़ा हाल था।
लेकिन हाल में कोई नहीं था।
बस एक प्राचीन सिंहासन पड़ा हुआ था, जिस पर एक दस्तावेज रखा था।
तेज ने दस्तावेज को उठाया और पढ़ना शुरू किया—
“जो इस कक्ष तक पहुँच चुका है, उसे यह जानना चाहिए कि असली तिलिस्म अभी आगे है। लेकिन इसे पाने के लिए तुम्हें अपने सबसे बड़े डर का सामना करना होगा।”
“तो यह असली तिलिस्म नहीं है?” चंद्रकांता ने पूछा।
“नहीं। यह सिर्फ पहला पड़ाव है।”
अध्याय 7: भयानक सिंह की वापसी
तभी, हाल के पिछले दरवाजे से भयानक सिंह और उसके लोग अंदर घुसे।
“तुम लोग हमेशा मेरी राह में क्यों आते हो?” भयानक सिंह गरजा।
“क्योंकि तुम इस तिलिस्म को गलत हाथों में डालना चाहते हो!” वीरेंद्र ने कहा।
“मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या सोचते हो,” भयानक सिंह हँसा। “मुझे सिर्फ तिलिस्म चाहिए!”
तभी उसने अपने आदमियों को इशारा किया और अगले ही पल गोलियाँ चलने लगीं!
अध्याय 8: ऐयारी का जवाब
लेकिन वीरेंद्र, तेज और भुवन पहले से तैयार थे।
तेज ने तुरंत धुएँ का बम फेंका, जिससे हाल में धुंध छा गई।
चंद्रकांता ने एक खिड़की से बाहर छलांग लगा दी और तेज़ी से वीरेंद्र के पास पहुँची।
“हमें इस जगह से बाहर निकलना होगा!”
अध्याय 9: दूसरा दरवाजा
भागते-भागते वे एक और दरवाज़े के सामने पहुँचे।
“यह दरवाज़ा एक और पहेली के पीछे छिपा होगा!”
तेज ने जल्दी से एक पुराने पत्थर को उठाया और उसे दरवाजे पर बने लॉक में घुमाया।
दरवाजा खुला… लेकिन अंदर का नज़ारा देखकर सभी स्तब्ध रह गए।
अध्याय 10: अगला मिशन
“यह… यह तो…”
कमरे के बीचोंबीच एक पुराना मानचित्र रखा था।
“यह अगला सुराग हो सकता है!”
लेकिन जैसे ही वीरेंद्र ने मानचित्र उठाया, कमरा हिलने लगा!
“यह एक ट्रैप है!” चंद्रकांता चिल्लाई।
अब उन्हें अगले भाग में बचकर निकलना था, लेकिन तिलिस्म का रहस्य अभी बाकी था।
अगले भाग में:
✅ क्या वे जिंदा बाहर निकल पाएँगे?
✅ क्या भयानक सिंह की असली साज़िश सामने आएगी?
✅ क्या तिलिस्म के अंदर एक नया खतरा छुपा है?
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भाग 1 यहाँ पढ़ें:-
” कहानी (Kahani) चंद्रकांता संतति – आधुनिक रूपांतरण” (भाग 1)