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Toggleपाकिस्तान का पानी रोकने की असली वजह: पहलगाम हमले के बाद भारत की रणनीति
Pahalgam LIVE Updates – पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों का पानी रोकने की रणनीति अपनाई है। यह कदम सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद उठाया गया है, जिसे भारत ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के जवाब में लागू किया। भारत का कहना है कि वह चेनाब नदी पर बगलिहार और सलाल जलविद्युत परियोजनाओं के जलाशयों की सफाई कर रहा है ताकि सर्दियों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके।

पहलगाम हमला और भारत का कड़ा रुख
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इस हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े होने के आरोपों के बाद भारत ने कड़ा रुख अपनाया। भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का ऐलान किया, जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच हुआ था। इस संधि के तहत सिंधु, झेलम, और चेनाब नदियों का पानी पाकिस्तान को आवंटित है, जबकि रावी, ब्यास, और सतलज पर भारत का अधिकार है।
पहलगाम हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव को और बढ़ा दिया। भारत का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकवाद को समर्थन देने के कारण यह संधि अब प्रासंगिक नहीं रही।

सिंधु जल संधि का निलंबन: क्या है इसका मतलब?
सिंधु जल संधि के निलंबन का मतलब है कि भारत अब पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) के पानी के प्रवाह की जानकारी साझा करने के लिए बाध्य नहीं है। इसके अलावा, भारत इन नदियों के पानी का उपयोग अपनी जरूरतों के लिए कर सकता है, जिसमें जलविद्युत उत्पादन, सिंचाई, और बाढ़ प्रबंधन शामिल हैं।
- जल प्रवाह नियंत्रण: भारत अब बांधों के माध्यम से पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है।
- डेटा साझा करने की समाप्ति: पाकिस्तान को हाइड्रोलॉजिकल डेटा नहीं मिलेगा, जिससे उसकी सिंचाई और बाढ़ प्रबंधन प्रणाली प्रभावित होगी।
- नई परियोजनाएं: भारत बिना पाकिस्तान की सहमति के नई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू कर सकता है।

चेनाब नदी पर बगलिहार और सलाल बांध: भारत की रणनीति
भारत ने चेनाब नदी पर स्थित बगलिहार और सलाल जलविद्युत परियोजनाओं के जलाशयों में फ्लशिंग और डीसिल्टिंग शुरू की है। नवभारत टाइम्स के अनुसार, यह प्रक्रिया जलाशयों में जमा तलछट को हटाने और सर्दियों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है।
फ्लशिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें जलाशय से तलछट को हटाने के लिए उच्च जल प्रवाह का उपयोग किया जाता है। वहीं, डीसिल्टिंग में ड्रेजिंग के माध्यम से जमा मिट्टी को हटाया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल बांधों की दक्षता बढ़ाती है बल्कि पानी के भंडारण की क्षमता को भी बेहतर बनाती है।

क्यों जरूरी है बांधों की सफाई?
हिमालयी नदियों में तलछट की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो बांधों और जलाशयों में जमा हो जाती है। यदि इसे समय-समय पर साफ नहीं किया गया, तो:
- बांध की जल भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
- जलविद्युत उत्पादन की दक्षता प्रभावित हो सकती है।
- निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष कुशविंदर वोहरा ने कहा, “सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद, भारत को इसके प्रावधानों का पालन करने की कोई बाध्यता नहीं है। हम बिना किसी रोक-टोक के फ्लशिंग और डीसिल्टिंग कर सकते हैं।”
भारत का रोडमैप: अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय
भारत ने सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद पश्चिमी नदियों के पानी को नियंत्रित करने के लिए एक व्यापक रोडमैप तैयार किया है। इस रोडमैप में अल्पकालिक, मध्यम अवधि, और दीर्घकालिक उपाय शामिल हैं।
अल्पकालिक उपाय
- किशनगंगा बांध: किशनगंगा से 9 क्यूसेक पानी के प्रवाह को रोककर भारत अधिक बिजली उत्पादन करेगा।
- जलाशयों की सफाई: बगलिहार और सलाल बांधों में फ्लशिंग और डीसिल्टिंग।
- पानी का पुनर्निर्देशन: मौजूदा नहरों जैसे रणबीर और प्रताप नहरों का उपयोग जम्मू क्षेत्र में पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए।
मध्यम अवधि के उपाय
भारत निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं में तेजी ला रहा है, जिनमें शामिल हैं:
- पाकल दुल: 1,000 मेगावाट
- रतले: 850 मेगावाट
- किरू: 624 मेगावाट
- क्वार: 540 मेगावाट
ये परियोजनाएं न केवल बिजली उत्पादन बढ़ाएंगी बल्कि जल भंडारण क्षमता को भी मजबूत करेंगी।
दीर्घकालिक उपाय
भारत ने चार और जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाई है, जो जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत क्षमता को 4,000 मेगावाट से बढ़ाकर 10,000 मेगावाट से अधिक करेंगी। इसके अलावा:
- तुलबुल परियोजना: झेलम नदी पर रुकी हुई इस परियोजना को फिर से शुरू किया जाएगा।
- वुलर झील: बाढ़ प्रबंधन के लिए झेलम और वुलर झील पर काम।
- लिफ्ट परियोजनाएं: पानी के उपयोग को तेजी से बढ़ाने के लिए।
पाकिस्तान पर क्या होगा असर?
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि सिंधु नदी प्रणाली पर बहुत हद तक निर्भर है। इस प्रणाली का 93% पानी सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए उपयोग होता है, और देश की 80% कृषि भूमि इसी पर निर्भर है। सिंधु जल संधि के निलंबन से:
- कृषि संकट: पानी की कमी से फसल उत्पादन प्रभावित होगा।
- ऊर्जा संकट: जलविद्युत उत्पादन में कमी आएगी।
- बाढ़ और सूखे की अनिश्चितता: डेटा साझा न होने से बाढ़ प्रबंधन मुश्किल होगा।
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने इसे “इंडस वाटर वॉर्स” करार दिया है, जिसमें कहा गया कि भारत वर्षों से इस रणनीति की तैयारी कर रहा है।
पाकिस्तान का दावा और जवाब
पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारत ने बिना सूचना के झेलम नदी में अतिरिक्त पानी छोड़ा, जिससे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बाढ़ का खतरा बढ़ गया। हालांकि, इस दावे की कोई अंतरराष्ट्रीय पुष्टि नहीं हुई है। पाकिस्तान ने इसे “अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन” बताते हुए संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की है।
वहीं, भारत का कहना है कि उसकी कार्रवाइयां पूरी तरह से वैध हैं, क्योंकि सिंधु जल संधि अब लागू नहीं है। भारत ने वियना समझौते की धारा 62 का हवाला दिया है, जो कहती है कि यदि कोई देश संधि के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है, तो उसे रद्द किया जा सकता है।
सैटेलाइट डेटा और तथ्य
इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) टीम ने सैटेलाइट इमेजरी और आधिकारिक डेटा के आधार पर बताया कि 30 अप्रैल 2025 तक सिंधु, झेलम, और चेनाब नदियां सामान्य रूप से बह रही थीं। हालांकि, चेनाब नदी के जलस्तर में कमी देखी गई है, खासकर सियालकोट के पास, जिससे स्थानीय किसानों में चिंता बढ़ गई है।
पाकिस्तान के सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार:
- 24 अप्रैल 2025 को चेनाब नदी का प्रवाह 22,800 क्यूसेक था।
- 30 अप्रैल 2025 को यह बढ़कर 26,268 क्यूसेक हो गया।
- झेलम नदी का प्रवाह 44,822 क्यूसेक से घटकर 43,486 क्यूसेक हुआ।
भारत के सामने चुनौतियां
हालांकि भारत ने पानी रोकने की रणनीति अपनाई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह इतना आसान नहीं है। पर्यावरणविद् हिमांशु ठक्कर के अनुसार, “चेनाब नदी पर बड़े बांध बनाने के जोखिम बहुत अधिक हैं, और इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति बड़े पैमाने पर पानी रोकने की अनुमति नहीं देती।”
इसके अलावा, यदि भारत बहुत अधिक पानी रोकता है, तो इससे भारत के ही पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए, भारत को सावधानीपूर्वक रणनीति अपनानी होगी।
FAQ
सिंधु जल संधि के निलंबन का क्या लंबी अवधि का प्रभाव होगा
भारत पर प्रभाव
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जल संसाधन प्रबंधन में लचीलापन: संधि के निलंबन से भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर जलाशयों की सफाई, नई जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण और जल प्रवाह के नियंत्रण में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी। अब भारत को पाकिस्तान को जलाशय फ्लशिंग, नई परियोजनाओं या प्रवाह डेटा के बारे में सूचित करने की जरूरत नहीं है12।
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हाइड्रो पावर क्षमता में वृद्धि: नई बांध और जलाशय परियोजनाओं के लिए डिजाइन और परिचालन संबंधी प्रतिबंध हट जाएंगे, जिससे भारत अपनी जलविद्युत क्षमता को बढ़ा सकता है12।
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आर्थिक लाभ: अधिक बिजली उत्पादन और जल संसाधनों का बेहतर उपयोग भारत की ऊर्जा और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा2।
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बुनियादी ढांचे का विकास: भारत को अब पश्चिमी नदियों पर नए जलाशय, डायवर्जन और स्टोरेज प्रोजेक्ट्स शुरू करने की अनुमति मिलेगी, हालांकि इनके निर्माण में 5 से 10 साल का समय लग सकता है2।
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अंतरराष्ट्रीय कानूनी चुनौतियां: संधि से बाहर निकलने या निलंबन पर पाकिस्तान विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से मध्यस्थता की मांग कर सकता है2।
पाकिस्तान पर प्रभाव
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जल सुरक्षा को खतरा: पाकिस्तान की 80% कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। संधि के निलंबन से पाकिस्तान की खाद्य सुरक्षा, शहरी जलापूर्ति और बिजली उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है14।
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आर्थिक अस्थिरता: सिंधु नदी तंत्र पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 25% का योगदान देता है। जल संकट से आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है12।
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बाढ़ और सूखे की चेतावनी में कमी: भारत से जल प्रवाह और मौसम संबंधी डेटा साझा न होने से पाकिस्तान को बाढ़ और सूखे की चेतावनी नहीं मिल पाएगी, जिससे जन-धन की हानि बढ़ सकती है5।
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राजनीतिक तनाव: जल संकट से आंतरिक अशांति और भारत के साथ संबंधों में और गिरावट आ सकती है4।
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
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द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट: संधि के निलंबन से भारत-पाकिस्तान संबंधों में और तनाव बढ़ सकता है4।
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अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता: पाकिस्तान विश्व बैंक या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों से मदद मांग सकता है, लेकिन भारत के पास भी संधि से बाहर निकलने का कानूनी विकल्प मौजूद है2।
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पर्यावरणीय चुनौतियां: नदी प्रवाह में बदलाव से पारिस्थितिकी तंत्र और नदी तट के समुदाय प्रभावित हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
सिंधु जल संधि का निलंबन भारत को जल संसाधनों के प्रबंधन और विकास में अधिक स्वतंत्रता देगा, लेकिन पाकिस्तान के लिए यह एक गंभीर जल, खाद्य और आर्थिक संकट पैदा कर सकता है। दीर्घकाल में यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और पर्यावरण पर भी गहरा प्रभाव डालेगा124।
सिंधु जल संधि के निलंबन का क्या अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर प्रभाव होगा
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty, IWT) के निलंबन से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं:
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अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और कानूनी चुनौतियां:
पाकिस्तान संभवतः संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में अपील कर सकता है, जिसमें भारत को बाध्यकारी संधि का उल्लंघन करने वाला बताया जा सकता है12। विश्व बैंक, जिसने इस संधि की मध्यस्थता की थी, अब भी विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है1। -
संधि ढांचे और अंतरराष्ट्रीय कानून:
IWT में कोई निकास खंड नहीं है, अर्थात न तो भारत और न ही पाकिस्तान इसे कानूनी रूप से एकतरफा रूप से निरस्त कर सकते हैं। संधि की कोई समाप्ति तिथि भी नहीं है और किसी भी संशोधन के लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है12। हालांकि, वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 62 के अनुसार यदि परिस्थितियों में मौलिक परिवर्तन होता है तो किसी पक्ष को संधि से पीछे हटने या अस्वीकार करने का अधिकार होता है12। -
अंतरराष्ट्रीय दबाव और क्षेत्रीय स्थिरता:
संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं क्षेत्रीय अस्थिरता को रोकने के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत पर बल दे सकती हैं1। इसके अलावा, निलंबन से भारत पर संधि को बहाल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है, जिससे भारत के वैश्विक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो सकता है15। -
अन्य देशों और संस्थाओं की भूमिका:
अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर वैश्विक शक्तियां और क्षेत्रीय संगठन, इस मामले में मध्यस्थता या शांति प्रयासों के लिए पहल कर सकते हैं। चीन जैसे देशों से पाकिस्तान सहायता की मांग कर सकता है, लेकिन भारत के साथ सीधे संघर्ष में शामिल होने से बचेगा2।
सिंधु जल संधि के निलंबन से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर कानूनी, राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा। यह विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जैसी संस्थाओं की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बना देगा, जिससे भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की संभावना बढ़ जाएगी125।
सिंधु जल संधि के निलंबन का क्या पाकिस्तान की जल प्रबंधन प्रणाली पर असर होगा
सिंधु जल संधि के निलंबन का पाकिस्तान की जल प्रबंधन प्रणाली पर गहरा और बहुआयामी प्रभाव पड़ेगा। इस संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली की नदियों-सिंधु, झेलम, चिनाब-से पानी मिलने की गारंटी थी, जो उसकी सिंचाई, बिजली उत्पादन और जल आपूर्ति का आधार है। निलंबन के कारण निम्नलिखित प्रमुख प्रभाव सामने आएंगे:
1. सिंचाई और कृषि क्षेत्र पर असर
पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है, जो देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के लिए अहम है। सिंधु जल संधि के निलंबन से भारत द्वारा नदी के पानी के प्रवाह को रोकने या नियंत्रित करने की संभावना बढ़ गई है, जिससे पाकिस्तान में नहरों में पानी की आपूर्ति अनियमित हो सकती है।
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बीज बोने और सिंचाई के शेड्यूल में असमंजस पैदा होगा।
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फसल उत्पादन में कमी आ सकती है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।
2. जल आपूर्ति और बाढ़ प्रबंधन में अनिश्चितता
सिंधु जल संधि के तहत भारत को नदी के जल प्रवाह का डेटा पाकिस्तान के साथ साझा करना होता था, जिससे पाकिस्तान बाढ़ और सूखे की पूर्व चेतावनी प्राप्त करता था। निलंबन के बाद यह हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा नहीं होगा, जिससे:
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बाढ़ प्रबंधन और सूखे की तैयारी प्रभावित होगी।
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अचानक जल प्रवाह में बदलाव से जन-धन की हानि हो सकती है।
3. विद्युत उत्पादन पर प्रभाव
पाकिस्तान की लगभग एक तिहाई बिजली जलविद्युत से उत्पन्न होती है, जो सिंधु नदी प्रणाली के जलाशयों पर निर्भर है। जल प्रवाह में अनियमितता से:
4. जल भंडारण और बुनियादी ढांचे की सीमाएं
पाकिस्तान के प्रमुख बांध जैसे मंगला और तारबेला की जल भंडारण क्षमता सीमित है (संधि के तहत वार्षिक जल आवंटन का लगभग 10%)। जल प्रवाह में कटौती से ये बांध पर्याप्त जल संग्रहित नहीं कर पाएंगे, जिससे:
5. आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता
सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का लगभग 25% हिस्सा है। जल संकट से:
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कृषि आधारित आय में गिरावट आएगी।
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ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ सकती है।
6. राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव
जल संकट के कारण पाकिस्तान भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दबाव बढ़ा सकता है, विश्व बैंक या अन्य संस्थानों से मध्यस्थता की मांग कर सकता है। साथ ही, जल संकट से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है47।
सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान की जल प्रबंधन प्रणाली पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। इससे उसकी सिंचाई, बिजली उत्पादन, जल आपूर्ति, बाढ़ प्रबंधन और आर्थिक स्थिरता प्रभावित होगी। जल प्रवाह और डेटा साझा न होने से पाकिस्तान की जल सुरक्षा कमजोर होगी, जिससे देश में खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा संकट और सामाजिक अस्थिरता का खतरा बढ़ जाएगा345।
निष्कर्ष
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ पानी को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया है। सिंधु जल संधि के निलंबन और चेनाब नदी पर बांधों की सफाई के साथ भारत ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है। हालांकि, इस कदम से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि पर गहरा असर पड़ सकता है, लेकिन भारत को भी अपनी सीमाओं और जोखिमों का ध्यान रखना होगा।
क्या भारत की यह रणनीति दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाएगी, या यह पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए मजबूर करेगी? यह समय ही बताएगा।

दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।