“आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं,– अदालत की अहम टिप्पणी

अगर आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है

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अदालत की अहम टिप्पणी:राज्य इस पर मनमानी भी नहीं कर सकते” 

 

क्या सरकार को आरक्षण देने की पूरी छूट है? सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया मामला!

भारत में आरक्षण हमेशा से एक संवेदनशील और बहस का विषय रहा है। एक तरफ, यह समाज के वंचित वर्गों को समान अवसर देने का प्रयास करता है, वहीं दूसरी तरफ, इसे लेकर कानूनी और सामाजिक स्तर पर कई सवाल उठते रहे हैं।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राज्य मनमाने ढंग से इसे लागू या रद्द कर सकते हैं। इस फैसले ने आरक्षण नीति पर नई बहस छेड़ दी है और सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं।


क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

👉 सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देते हुए कहा कि आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह एक संवैधानिक प्रावधान है जो सरकार की नीतियों पर निर्भर करता है।

👉 हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें मनमाने ढंग से आरक्षण नीति को लागू या रद्द नहीं कर सकतीं।

👉 अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अगर कोई सरकार आरक्षण देती है या उसे हटाती है, तो उसे उचित कारण और तर्कसंगत आधार प्रस्तुत करना होगा।


आरक्षण को लेकर पहले क्या फैसले आ चुके हैं?

🔹 इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) – इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।

🔹 माराठा आरक्षण मामला (2021) – सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के 12-13% मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया और दोहराया कि आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती।

🔹 SC/ST प्रमोशन में आरक्षण मामला (2018) – कोर्ट ने कहा कि सरकार को प्रमोशन में आरक्षण देने का अधिकार है, लेकिन यह कोई बाध्यकारी कर्तव्य नहीं है।

🔹 EWS आरक्षण (2022) – सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि यह सामाजिक न्याय की भावना को मजबूत करता है।


अब सवाल उठता है –

, तो यह कैसे दिया जाता है?

आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5), 16(4), 16(4A) और 46 में किया गया है।

✔️ अनुच्छेद 15(4) और 15(5) – राज्य सरकारों को पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
✔️ अनुच्छेद 16(4) – सरकार को सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की अनुमति देता है।
✔️ अनुच्छेद 16(4A) – SC/ST के लिए प्रमोशन में आरक्षण की बात करता है।
✔️ अनुच्छेद 46 – सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की बेहतरी के लिए सरकार को नीतियां बनाने का निर्देश देता है।

👉 मतलब यह हुआ कि आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि यह सरकार की नीतियों और जरूरतों के आधार पर दिया जाने वाला एक संवैधानिक प्रावधान है।


अब यह सवाल उठता है – क्या सरकार कभी भी आरक्षण को खत्म कर सकती है?

यह पूरी तरह से सरकार की नीतियों और न्यायिक समीक्षा पर निर्भर करता है।

अगर सरकार आरक्षण हटाना चाहती है, तो उसे यह साबित करना होगा कि अब इसकी जरूरत नहीं है।
अगर सरकार नया आरक्षण लागू करना चाहती है, तो उसे यह प्रमाण देना होगा कि यह समाज के किसी वर्ग के लिए आवश्यक है।
अदालतें यह सुनिश्चित करेंगी कि आरक्षण मनमाने ढंग से लागू या समाप्त न हो।

🚨 महत्वपूर्ण: 2021 में हरियाणा सरकार द्वारा प्राइवेट नौकरियों में 75% आरक्षण देने के फैसले को भी अदालत में चुनौती दी गई थी, जहां न्यायालय ने सरकार से स्पष्ट तर्क प्रस्तुत करने को कहा था।


आरक्षण पर बहस – समर्थन और विरोध

आरक्षण के पक्ष में तर्क:

✔️ समाज के वंचित वर्गों को समान अवसर मिलता है।
✔️ ऐतिहासिक रूप से वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने में मदद करता है।
✔️ सामाजिक असमानता को कम करने का प्रयास करता है।

आरक्षण के खिलाफ तर्क:

✔️ योग्यता और प्रतिभा से समझौता होता है।
✔️ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को ध्यान में नहीं रखा जाता (हालांकि अब EWS आरक्षण आ चुका है)।
✔️ कई बार सक्षम व्यक्तियों को भी सिर्फ जातिगत आधार पर आरक्षण मिल जाता है।


क्या भविष्य में आरक्षण नीति बदलेगी?

🔸 EWS आरक्षण को लागू करके सरकार ने यह संकेत दिया है कि अब आरक्षण केवल जाति पर आधारित नहीं रहेगा, बल्कि आर्थिक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाएगा।
🔸 सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से यह साफ हो गया है कि आरक्षण नीति को संतुलित रखना जरूरी है, और राज्य सरकारें इस पर मनमानी नहीं कर सकतीं।
🔸 भविष्य में आरक्षण में सुधार संभव है, ताकि इसे और अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाया जा सके।


निष्कर्ष: आरक्षण बना रहेगा, लेकिन सरकार की मनमानी नहीं चलेगी!

✔️ आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक संवैधानिक प्रावधान है।
✔️ राज्य सरकारें इसे बिना ठोस कारण के लागू या समाप्त नहीं कर सकतीं।
✔️ अदालतें यह सुनिश्चित करेंगी कि आरक्षण नीति न्यायसंगत और आवश्यक हो।
✔️ भविष्य में आरक्षण प्रणाली में बदलाव की संभावना बनी हुई है।

“आरक्षण रहेगा, लेकिन नियमों के साथ!”

क्या आपको लगता है कि आरक्षण नीति में बदलाव की जरूरत है? हमें कमेंट में बताएं 

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