27 फरवरी 2025 – रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन वर्ष पूरे होने के बीच एक अभूतपूर्व कूटनीतिक मोड़ सामने आया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन को अमेरिकी समर्थन जारी रखने के बदले उसके दुर्लभ खनिज संसाधनों में हिस्सेदारी की शर्त रखी है। इस संभावित “खनिज सौदे” पर ट्रंप के बयान, यूक्रेन की मजबूरियां, रूस की रणनीति, अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव, वैश्विक प्रभाव और विशेषज्ञों के विश्लेषण पर नज़र डालते हैं।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!Table of Contents
Toggleट्रंप का बयान: खनिज सौदे की शर्तें और प्रभाव
ट्रंप ने संकेत दिया है कि यूक्रेन को अमेरिकी सहायता बनाए रखने के लिए अपने खनिज संसाधनों से होने वाली भविष्य की आय का हिस्सा संयुक्त रूप से नियंत्रित एक कोष में जमा करना होगा (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। व्हाइट हाउस के अनुसार प्रस्तावित समझौते में यूक्रेन की दुर्लभ-पृथ्वी (रेअर अर्थ) खनिज संपदा से होने वाली आधी आमदनी अमेरिका-यूक्रेन के संयुक्त फंड में जाएगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ट्रंप प्रशासन इसे यूक्रेन युद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए निवेश पर “रिटर्न” की तरह देख रहा है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)।
हालांकि, ट्रंप ने साफ किया है कि इस सौदे के बावजूद अमेरिका किसी विस्तृत सुरक्षा गारंटी देने को तैयार नहीं होगा – यह भूमिका यूरोप को निभानी चाहिए (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। उन्होंने कहा कि यूक्रेन को भविष्य में किसी रूसी हमले से बचाने की प्राथमिक जिम्मेदारी यूरोपीय देशों पर होगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ट्रंप युद्ध का जल्द अंत चाहते हैं और अधिक समय तक अमेरिकी संसाधन खर्च करने के पक्ष में नहीं हैं (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। अपनी तीखी टिप्पणियों के लिए पहचाने जाने वाले ट्रंप ने हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमीर ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” तक कह डाला और चेतावनी दी कि यदि उन्होंने रूस के साथ शीघ्र शांति समझौता नहीं किया तो उन्हें अपना देश गंवाने का जोखिम है (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ट्रंप के इन बयानों ने संकेत दिया है कि वे यूक्रेन पर तेज़ी से समझौता करने का दबाव बना रहे हैं।
उधर, ट्रंप मास्को के साथ सीधी बातचीत में भी सक्रिय हैं। उन्होंने इस माह की शुरुआत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बात की और इसके बाद इस्तांबुल में अमेरिकी व रूसी अधिकारियों की बैठक तय हुई (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ट्रंप की पहल ने वॉशिंगटन की पारंपरिक रूस-नीति को पलट दिया है, जो अब तक यूक्रेन के पक्ष में मज़बूत एकजुटता और रूस को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने पर केंद्रित थी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। नई स्थिति में, ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप युद्ध खत्म करने के लिए सौदेबाज़ी को प्राथमिकता दे रहे हैं, भले ही इसके लिए आर्थिक लेन-देन या राजनीतिक रियायतें क्यों न देनी पड़ें।
यूक्रेन की स्थिति: युद्धजनित आर्थिक व कूटनीतिक दबाव
लगातार तीसरे वर्ष जारी युद्ध ने यूक्रेन की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढाँचे को बुरी तरह झकझोर दिया है। देश की जीडीपी में भारी गिरावट आई और महंगाई दर अभी भी दो अंकों में बनी हुई है (Ukraine’s economy could grow by 5% next year if…)। विदेशी सहायता के भरोसे चल रही यूक्रेनी अर्थव्यवस्था के लिए अमेरिकी मदद जीवनरेखा जैसी है। ऐसे में वॉशिंगटन की ओर से सहायता कम होने के संकेत कीव के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। पिछले सप्ताह अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर माइक जॉनसन ने साफ कहा था कि यूक्रेन के लिए और अधिक फंडिंग बिल पारित करने का “कोई रूचि नहीं” है (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। इस राजनीतिक माहौल ने ज़ेलेंस्की सरकार को समझौता वार्ताओं में कुछ कठिन फैसले लेने पर मजबूर किया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने अपने नियमित संबोधन में ज़ोर देकर कहा है कि अमेरिकी सहायता किसी सूरत में रुकनी नहीं चाहिए, क्योंकि “शांति के रास्ते पर हमें ताकत की ज़रूरत है” (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ज़ेलेंस्की के मुताबिक़ युद्ध रोकने और टिकाऊ शांति कायम करने के लिए पश्चिमी समर्थन अत्यंत जरूरी है। इसी खातिर यूक्रेन सरकार ट्रंप की सौदेबाज़ी पर बातचीत के लिए तैयार तो है, लेकिन अपनी संप्रभुता और सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती। यूक्रेन के प्रधानमंत्री डेनीस श्मिहाल ने इस प्रस्तावित खनिज समझौते को फिलहाल “प्रारंभिक” करार देते हुए आश्वस्त किया कि देश के हितों के खिलाफ़ कोई “औपनिवेशिक संधि” हस्ताक्षर नहीं की जाएगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। श्मिहाल ने कहा कि पहले से मौजूद राज्य-स्वामित्व वाली खदानों, ऊर्जा सुविधाओं या मौजूदा राजस्व पर यह डील लागू नहीं होगी; यह केवल भविष्य में संसाधनों के दोहन से होने वाली आय पर केंद्रित रहेगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। कीव चाहता है कि इस समझौते को किसी ठोस सुरक्षा गारंटी से जोड़ा जाए, ताकि युद्धविराम के बाद रूस दोबारा आक्रामक न हो (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters) (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ज़ेलेंस्की स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर अमेरिका की ओर से सुरक्षा आश्वासन नहीं मिले, तो यह सौदा यूक्रेन के लिए अधिक लाभदायक साबित नहीं होगा (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)।
यूक्रेन के सामने कूटनीतिक चुनौती यह है कि वह मदद करने वाले देशों की शर्तों को一定 हद तक स्वीकार करे, लेकिन ऐसा कदम न उठाए जिससे उसकी संप्रभुता गिरवी रखी हुई दिखे। ज़ेलेंस्की ने आगाह किया है कि कोई भी समझौता यूक्रेन को “कर्ज़दार राष्ट्र” के रूप में पेश नहीं करना चाहिए, जिसे युद्धकालीन सहायता के बदले अरबों डॉलर चुकाने हों (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। यही वजह है कि कीव इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि खनिज राजस्व साझा करने का समझौता पारस्परिक हितों को ध्यान में रखकर हो और इसे ठोस सुरक्षा प्रतिज्ञाओं के साथ संलग्न किया जाए।
रूस की रणनीति: पुतिन का प्रस्ताव और संसाधनों का खेल
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अप्रत्याशित रूप से एक प्रलोभन भरा प्रस्ताव सामने रखा है। उन्होंने अमेरिका सहित विदेशी निवेशकों को रूस में – और यहां तक कि रूस द्वारा कब्ज़ा किए गए यूक्रेनी क्षेत्रों में – दुर्लभ खनिजों के दोहन के लिए आमंत्रित किया है (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पुष्टि की कि पुतिन की पेशकश में क्रीमिया तथा डोनेत्स्क, लुहान्स्क, खेरसॉन व ज़ापोरिज़िया जैसे अवैध रूप से अधीकृत यूक्रेनी प्रदेशों की खनिज संपदा भी शामिल है (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। पुतिन ने हाल ही में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि “सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र” के लिए ये संसाधन बेहद अहम हैं (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। इसके साथ ही उन्होंने संकेत दिया कि रूस के पास रेअर अर्थ खनिजों का विशाल भंडार है, जिसे विकसित करने में वह अमेरिका के साथ मिलकर काम करने को तैयार है (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)।
ट्रंप ने भी संकेत दिए हैं कि वह पुतिन के इस संसाधन-केंद्रित कूटनीतिक दांव में रुचि रखते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ एक मुलाकात में ट्रंप ने कहा कि वॉशिंगटन रूस के साथ आर्थिक सौदे कर सकता है, क्योंकि “उनके पास वह बहुत कुछ है जो हमें चाहिए… विशाल दुर्लभ खनिज भंडार, बहुमूल्य संसाधन… जो हमारे काम आ सकते हैं” (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। ट्रंप ने यह भी जोड़ा कि रूस के पास मूल्यवान संसाधन हैं और अमेरिका के पास भी देने के लिए बहुत कुछ है – “डील हो जाए तो बेहतर होगा” (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। विश्लेषकों का मानना है कि क्रेमलिन का यह कदम यूक्रेन को किनारे कर सीधे अमेरिका को साधने की कोशिश है। अमेरिकी थिंक-टैंक इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ़ वॉर ने आकलन किया है कि पुतिन ने दुर्लभ खनिजों पर सौदा करने का प्रस्ताव यह सोचकर रखा है कि इससे वह अमेरिका को वास्तविक राजनीतिक रियायतें दिए बिना आर्थिक लालच में फँसा लेंगे और यूक्रेन को मात दे देंगे (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine)। सीधे शब्दों में कहें, मास्को वॉशिंगटन को संसाधनों के माध्यम से लुभाकर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, ताकि युद्ध को अपने पक्ष में समाप्त किया जा सके।
इसके अलावा, रूस मैदान पर दबाव बनाए रखने की रणनीति भी जारी रखे हुए है। भले ही कूटनीति तेज हो गई हो, रूस के मिसाइल और ड्रोन हमले यूक्रेनी शहरों पर थमने का नाम नहीं ले रहे हैं (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। पुतिन शायद ये संकेत देना चाहते हैं कि यदि उनके प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए गए, तो रूस जंग जारी रखने को तैयार है। क्रेमलिन ने किसी भी विदेशी शांति सेना (शांति रक्षक बल) को यूक्रेन भेजे जाने की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। लावरोव ने यूरोपीय शांति सैनिकों की तैनाती के विचार पर दो-टूक कहा कि “ऐसा कोई विकल्प नहीं होगा” (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। इसका मतलब है कि रूस युद्धविराम की सूरत में सुरक्षा व्यवस्था को सिर्फ अपने और अमेरिका जैसे प्रमुख शक्ति केंद्रों के बीच सीमित रखना चाहता है, यूरोप या संयुक्त राष्ट्र को नहीं। पुतिन की रणनीति समग्र रूप से भूराजनीतिक सौदेबाज़ी पर टिकी है – वह प्राकृतिक संपदा की मोहिनी दिखाकर प्रतिबंधों में राहत और अपने कब्जों को عملی रूप से मान्यता दिलवाना चाहते हैं, बगैर बड़ी सैन्य रियायत दिए।
अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव: बाइडेन बनाम ट्रंप का रुख
ट्रंप के प्रस्ताव ने अमेरिकी विदेश नीति की पारंपरिक धारणा को उलट दिया है। जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका ने अब तक यूक्रेन को दृढ़ समर्थन दिया, रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए और यूरोपीय सहयोगियों संग मिलकर मॉस्को को अलग-थलग करने का प्रयास किया। बाइडेन प्रशासन का मंत्र था – “जब तक ज़रूरी होगा, हम यूक्रेन के साथ खड़े रहेंगे” – जिसमें किसी तरह की शर्तें सार्वजनिक रूप से शामिल नहीं थीं। लेकिन जनवरी 2025 में ट्रंप के पद संभालते ही वॉशिंगटन का रुख वास्तविक राजनीति (रियलपोलिटिक) की ओर मुड़ गया है। वर्तमान अमेरिकी सरकार यूक्रेन को मदद के बदले सीधी आर्थिक कीमत चुकाने पर ज़ोर दे रही है, जो युद्धकालीन अमेरिकी नीति में एक अप्रत्याशित मोड़ है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)।
डेमोक्रेट नेता और पूर्व बाइडेन प्रशासन के अधिकारी ट्रंप की इस पहल पर खुलकर आपत्ति जता रहे हैं। अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति की सदस्य एवं वरिष्ठ डेमोक्रेट सांसद जीन शाहीन ने चेतावनी दी है कि ट्रंप एक साथ रूस और यूक्रेन – दोनों के साथ कोई खनिज अधिकार सौदा करने की फ़िराक में हैं (The Guardian | The Bulletin Box)। शाहीन के अनुसार ट्रंप द्वारा कीव से उसके दुर्लभ खनिज भंडार तक अमेरिकी कंपनियों की पहुंच मांगना और साथ ही मॉस्को संग संसाधनों पर सौदेबाज़ी करना गंभीर चिंता का विषय है (The Guardian | The Bulletin Box)। डेमोक्रेट्स का तर्क है कि ऐसी मांग रखना एक संघर्षग्रस्त सहयोगी के प्रति विश्वासघात जैसा है और इससे अमेरिका की नैतिक साख गिर रही है। वे ट्रंप प्रशासन पर यूक्रेन की संप्रभुता को कमज़ोर करने और पुतिन को इनाम देने का आरोप लगा रहे हैं। बाइडेन स्वयं (जो अब विपक्ष में हैं) ने पूर्व में कहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई भी समाधान यूक्रेन की शर्तों पर होना चाहिए, न कि उस पर आर्थिक दबाव डालकर (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। यह विचार अभी भी डेमोक्रेटिक पार्टी बनाम ट्रंप प्रशासन के बीच मूल विभाजन रेखा बना हुआ है।
भविष्य की योजनाओं के संदर्भ में, बाइडेन खेमे ने संकेत दिया है कि वे यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता को राजनैतिक सौदों से बाँधने के विरोधी रहेंगे। डेमोक्रेट सांसद यह मुद्दा अमेरिकी कांग्रेस में उठा रहे हैं कि युद्ध के दौरान किसी मित्र राष्ट्र से “पैसे या संसाधनों की वसूली” करने जैसी नीति अमेरिका की दीर्घकालिक वैश्विक नेतृत्व भूमिका के लिए नुकसानदेह है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org) (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। हालांकि, वर्तमान में अमेरिकी संसद के निचले सदन (हाउस) में रिपब्लिकन बहुमत होने के कारण यूक्रेन को बिना शर्त अनुदान दिलाना डेमोक्रेट्स के लिए कठिन चुनौती बना हुआ है (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। फिर भी, बाइडेन और उनके सहयोगी यूरोपीय भागीदारों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि किसी संभावित शांति समझौते में यूक्रेन की रक्षा और पुनर्निर्माण की पर्याप्त व्यवस्थाएं हों। उनका आग्रह है कि भले ही ट्रंप प्रशासन सीधे सैन्य गारंटी न दे, अमेरिका कम से कम यूरोपीय सुरक्षा प्रयासों के लिए “बैकस्टॉप” (अंतिम सहारा) की भूमिका निभाए (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। आने वाले दिनों में अमेरिका की यही अंदरूनी खींचतान यह निर्धारित करेगी कि उसकी विदेश नीति अंततः सिद्धांत आधारित रहती है या सौदेबाजी आधारित।
वैश्विक प्रभाव: यूरोप और अन्य देशों पर स्थिति का असर
व्हाइट हाउस की इस नई दिशा ने यूरोप सहित दुनिया भर में हलचल पैदा कर दी है। यूरोपीय देशों ने पिछले तीन सालों में अभूतपूर्व एकता दिखाकर यूक्रेन की मदद की, लेकिन अब उन्हें डर है कि यदि अमेरिका ने रुख बदल लिया तो इस एकता को गहरा आघात लग सकता है। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड समेत प्रमुख यूरोपीय शक्तियों के नेता आपस में आपात बैठकें कर रहे हैं ताकि ट्रंप की रणनीति का मिलकर सामना किया जा सके (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री सर कीयर स्टारमर वॉशिंगटन पहुंच गए हैं और उन्होंने ट्रंप से स्पष्ट कहने की तैयारी की है कि “यूक्रेन के बारे में कोई भी बातचीत यूक्रेन की गैर-मौजूदगी में नहीं हो सकती” (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। स्टारमर जोर दे रहे हैं कि शांति के लिए किसी भी समझौते में यूक्रेन की स्वायत्तता और सुरक्षा लाल रेखाएं होनी चाहिए।
ट्रंप द्वारा ज़ेलेंस्की को “तानाशाह” कहने और सऊदी अरब में यूरोप-यूक्रेन को बाहर रखकर रूस से गुप्त बातचीत करने की ख़बरों ने यूरोपीय राजधानियों में बेचैनी बढ़ा दी है (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र में हाल ही में रूस की आक्रमकता की निंदा करने वाले एक प्रस्ताव पर अमेरिका ने चीन और उत्तर कोरिया जैसे अधिनायकवादी देशों के साथ मिलकर वीटो कर दिया, जिसने यूरोपीय सहयोगियों को हक्का-बक्का कर दिया (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। यूरोपीय संघ के राजनयिक इसे पश्चिमी मोर्चे में दरार के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि यदि वॉशिंगटन मास्को के साथ किसी समझौते पर चला जाता है, तो भविष्य में यूरोप को अपनी सुरक्षा स्वयं संभालनी पड़ेगी। नाटो (NATO) गठबंधन की एकजुटता भी दांव पर है – खासकर बाल्टिक देशों और पोलैंड जैसे रूस-समीपी देश चिंतित हैं कि कहीं यूक्रेन को संसाधनों के बदले अधूरा सुरक्षा वादा देकर छोड़ दिया गया तो अगला निशाना वे न बन जाएं।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्टारमर ने संकेत दिए हैं कि यदि आवश्यक हुआ तो ब्रिटेन और यूरोपीय देश यूक्रेन में शांति रक्षक सेना भेजने को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें अमेरिकी सहयोग और सुरक्षा आश्वासन की ज़रूरत होगी (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। स्टारमर ने चेतावनी दी कि अगर ठोस गारंटी के बिना सिर्फ युद्धविराम हुआ, तो पुतिन मौके का फायदा उठाकर कुछ समय बाद फिर आक्रमण कर सकते हैं (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी बहस चल रही है – कुछ नेता मानते हैं कि यूरोप को अपनी रक्षा क्षमता बढ़ानी होगी, जबकि कुछ अभी भी उम्मीद लगाए हैं कि अमेरिका पूरी तरह पीछे नहीं हटेगा।
अन्य वैश्विक प्रभावों की बात करें तो ऊर्जा और अनाज आपूर्ति के मोर्चे पर भी नज़र है। यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा कीमतों और भोजन आपूर्ति को पहले ही झटका दिया था; यदि कोई शांति समझौता होता है तो यूरोप को गैस-तेल की आपूर्ति में राहत मिल सकती है और विकासशील देशों को सस्ते अनाज की आपूर्ति बहाल हो सकेगी। लेकिन विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यह शांति रूस की आक्रामक शर्तों पर होती है, तो यह अंतरराष्ट्रीय कानून और छोटे देशों की संप्रभुता के लिए नकारात्मक नज़ीर पेश करेगी। चीन जैसे राष्ट्र, जो स्वयं क्षेत्रीय विस्तार की महत्वाकांक्षा रखते हैं, बारीकी से यह परिदृश्य देख रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका अपने पारंपरिक सहयोगियों को बीच रास्ते छोड़कर संसाधनों के लिए सौदे करता है, तो इससे एशिया में ताइवान या दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों पर अमेरिकी प्रतिबद्धता संदिग्ध हो सकती है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। कुल मिलाकर, यूक्रेन युद्ध पर बनी यह नई त्रिपक्षीय खींचतान – एक ओर अमेरिका का सौदे वाला रुख, दूसरी ओर रूस का संसाधन कार्ड, और तीसरी ओर यूरोप व सहयोगियों की सुरक्षा चिंताएं – वैश्विक शक्ति संतुलन पर दूरगामी असर डाल सकती है।
विश्लेषण: विशेषज्ञों की राय और संभावित परिदृश्य
विश्लेषकों और विशेषज्ञों ने ट्रंप के खनिज सौदे की पहल पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पिछले कुछ दशकों में ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जहां अमेरिका या किसी बड़े देश ने युद्धग्रस्त साथी से औपचारिक रूप से भुगतान या संसाधन सौंपने की मांग की हो (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। कोलंबिया विश्वविद्यालय की शांति समझौता विशेषज्ञ वर्जीनिया पेज फोर्टना ने न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में कहा कि यूक्रेन जैसे संकट में घिरे देश से उसके खनिज धन की ऐसी खुली मांग “रैकेट” जैसी लगती है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशंस के सीनियर फ़ेलो स्टीफ़न ए. कुक ने भी इस नीति पर क्षोभ जताते हुए इसे सीधे-सीधे “जबरन वसूली (ब्लैकमेल) जैसा” क़रार दिया (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। सभी विशेषज्ञ इस बात पर सहमत दिखे कि ट्रंप का यह रवैया अमेरिकी विदेश नीति में एक बुनियादी बदलाव को दर्शाता है, क्योंकि इतिहास में अमेरिका ने अपने मित्रों की सुरक्षा के बदले इस तरह खुली कीमत वसूलने की पहल कभी नहीं की (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। न्यूयॉर्क टाइम्स के एक विश्लेषण में कहा गया कि हालांकि अमेरिका ने अतीत में तेल जैसे संसाधनों की रक्षा हेतु युद्ध लड़े हैं, लेकिन “कुवैत को आज़ाद कराने के बाद भी वॉशिंगटन ने कभी कुवैत से यह नहीं कहा था कि ‘इसके बदले हमें भुगतान करो’” (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। अक्सर सहयोगी राष्ट्र स्वेच्छा से कुछ आर्थिक योगदान करते थे (जैसे खाड़ी युद्ध में सऊदी अरब ने सहयोग दिया था), मगर इस तरह दबाव डालकर सौदा करना अभूतपूर्व है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप अपने व्यावसायिक सौदेबाज़ी के तौर-तरीकों को अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लागू करने की कोशिश कर रहे हैं (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। रियल एस्टेट कारोबारी के रूप में न्यूयॉर्क में बिताए समय से उन्होंने सीखा कि हर निर्णय लाभ उठाने का मौका होता है – और अब उसी मानक को वे वैश्विक राजनीति पर भी लगाना चाहते हैं (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि भू-राजनीति कोई कारोबार नहीं है। विदेश नीति में किसी महाशक्ति की विश्वसनीयता (क्रेडिबिलिटी) सबसे अहम होती है (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। संयम (Deterrence) इसी भरोसे पर टिका है कि देश अपने वादे निभाएंगे। यदि अमेरिका अपने वचनों से पीछे हटकर हर चीज़ में सौदा ही खोजेगा, तो मित्र राष्ट्रों का उस पर विश्वास कम होगा और विरोधी देश उसकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं पर शक करते हुए आक्रामक कदम उठाने के लिए उत्साहित हो सकते हैं (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, “ट्रंप की कूटनीति मित्र देशों को संदेश देती है कि अमेरिका अपने दोस्तों की मदद या वचन पूरा करने के मामले में भरोसेमंद नहीं, और विरोधियों को और भी खतरनाक संकेत देती है – कि अमेरिका अपने व्यापक दीर्घकालिक हितों की कीमत पर भी अल्पकालिक आर्थिक लाभ को तरजीह देने को तैयार है” (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org)।
आगे के परिदृश्य काफी जटिल हैं। एक संभावना यह है कि यदि ज़ेलेंस्की और ट्रंप किसी मध्य-زمین पर सहमत हो जाते हैं – जैसे कि यूक्रेन आंशिक आर्थिक रियायत देता है और बदले में अमेरिका व यूरोप से कुछ सुरक्षा आश्वासन मिलते हैं – तो एक अस्थायी शांति समझौता हो सकता है। लेकिन यदि इस समझौते में ठोस गारंटी नहीं रहीं, तो यूक्रेन और यूरोप के मन में हमेशा आशंका रहेगी कि रूस दोबारा हमलावर हो सकता है (जैसा कि ब्रिटिश पीएम ने चेताया) (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…)। दूसरी ओर, अगर यूक्रेन इन शर्तों को मानने से इनकार करता है, तो ट्रंप प्रशासन से मिलने वाली सहायता में कटौती हो सकती है जिससे युद्ध की दशा कीव के लिए और विकट हो जाएगी। यूरोप तब स्वयं अधिक जिम्मेदारी उठाने को मजबूर होगा, जो आर्थिक व सैन्य दोनों दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होगा।
कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि ट्रंप-पुतिन की बढ़ती नज़दीकी से एक नया शक्ति समीकरण उभर सकता है, जिसमें अमेरिका और रूस अपने-अपने फ़ायदे के लिए यूक्रेन संकट को ख़त्म करेंगे, भले ही इसका मतलब यूक्रेन के कुछ भूभाग पर रूसी कब्जे को मौन स्वीकृति देना हो। ऐसी स्थिति यूरोप में नए तरह के शीतयुद्ध जैसी तनावपूर्ण शांति को जन्म दे सकती है। दूसरी तरफ, यदि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दबाव के चलते ट्रंप अपने रुख़ में कुछ नरमी लाते हैं – जैसे कांग्रेस, जनमत या सहयोगी देशों के दबाव से – तो संभव है कि अमेरिकी नीति कुछ संतुलित हो जाए और यूक्रेन को बिना कठोर शर्तों के सुरक्षा सहायता मिलती रहे। आने वाले हफ्तों में ज़ेलेंस्की और ट्रंप की वॉशिंगटन में वार्ता बेहद निर्णायक साबित होगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)। ज़ेलेंस्की ने कहा है कि इस बातचीत पर इस सौदे की “सफलता या विफलता” निर्भर करेगी (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters)।
निश्चित है कि यूक्रेन युद्ध में यह मोड़ सिर्फ क्षेत्रीय नहीं बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का संकेतक है। खनिज संपदा, धन और शक्ति-राजनीति के इस घालमेल में सभी पक्ष अपने-अपने हित साधने की कोशिश में हैं। दुनिया की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह “खनिज सौदा” युद्ध को विराम देगा या फिर पहले से भी अधिक पेचीदा भू-राजनीतिक संघर्ष को जन्म देगा। आने वाले दिनों में शांति की कीमत खनिजों में तौली जाएगी या सिद्धांतों में – यही इस कथा का केंद्रीय प्रश्न बन गया है।
स्रोत: अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियाँ व न्यूज़ रिपोर्ट्स (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters) (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters) (Trump confirms Zelenskiy visit to sign Ukraine minerals deal | Reuters) (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine) (Rare earth metals – Lavrov confirms Putin’s offer to Americans to develop resources / The New Voice of Ukraine) (Starmer faces up to Trump over Ukraine role in peace…) (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org) (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org) (‘Racketeering and blackmail’: Western experts outraged by minerals deal – NYT – Ukraine Today .org) (Reuters, The Guardian, Independent, NV, Ukraine Today आदि)
डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण: मोदी के नहीं जाने के क्या हैं मायने