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Toggleभारत की रणनीतिक स्वायत्तता: पश्चिमी आलोचना, नरेंद्र मोदी का रूस दौरा और ट्रंप की नीतियों का प्रभाव(Indian Foreign Policy in Hindi)
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की कूटनीतिक संतुलन नीति वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बनी रही। पश्चिमी देशों ने भारत के रूस से सस्ते तेल खरीदने और तटस्थ रुख अपनाने की आलोचना की, लेकिन भारत ने अपने आर्थिक और ऊर्जा हितों को प्राथमिकता दी। नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा और अमेरिका में बदलती राजनीतिक स्थितियों से यह साफ हो गया कि भारत की विदेश नीति दूरदर्शी और प्रभावी रही है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इस ब्लॉग में हम तीन प्रमुख पहलुओं पर चर्चा करेंगे:
- पश्चिमी आलोचना और भारत की रणनीतिक जीत
- पश्चिम के विरोध के बावजूद मोदी का रूस दौरा
- क्या भारत का निर्णय सही था? ट्रंप की नीतियों से जवाब मिल गया!
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अमेरिका का दबाव और भारत का जवाब
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भारत-रूस संबंधों का भविष्य
अमेरिका का दबाव और भारत का जवाब
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मार्च 2022 में भारत की नीति को “ढुलमुल” बताया था और कहा था कि क्वॉड (Quad) समूह के अन्य देश—जापान और ऑस्ट्रेलिया—रूस के खिलाफ हैं, लेकिन भारत का रुख अलग है।
अमेरिका भारत पर रूस के खिलाफ खड़े होने का दबाव बनाता रहा, लेकिन भारत ने अपनी वित्तीय और ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता दी और रूस से डिस्काउंट पर तेल खरीदना जारी रखा।
परिणाम?
📌 भारत-रूस व्यापार 2023 में रिकॉर्ड 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
📌 भारत को रूस से तेल 20-30% सस्ता मिला, जिससे महंगाई नियंत्रित करने में मदद मिली।
📌 भारत ने रूस से रुपये में व्यापार कर डॉलर निर्भरता घटाने की दिशा में कदम बढ़ाया।
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पश्चिमी आलोचना और भारत की रणनीतिक जीत
अमेरिका और यूरोप ने भारत पर दबाव क्यों बनाया?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए और दुनिया भर के देशों से रूस का बहिष्कार करने की अपील की। लेकिन भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस के साथ व्यापार बनाए रखा।
📌 अमेरिका और यूरोप ने भारत से उम्मीद की थी कि वह रूस की आलोचना करेगा और उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा।
📌 भारत ने सस्ते दरों पर रूसी तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की।
📌 यूरोपीय मीडिया में भारत की “गैर-जिम्मेदार विदेश नीति” कहकर आलोचना हुई।
पश्चिमी मीडिया और नेताओं की आलोचना
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने मार्च 2022 में कहा था कि क्वॉड (Quad) के अन्य देश – जापान और ऑस्ट्रेलिया – रूस के खिलाफ हैं, लेकिन भारत का रुख अलग है।
अमेरिकी अधिकारी दलीप सिंह ने भी भारत को चेतावनी दी थी कि अगर चीन एलएसी (LAC) पर हमला करता है, तो रूस भारत की मदद नहीं करेगा।
📌 ब्रिटिश मीडिया ने लिखा कि भारत रूस का “सहयोगी” बन रहा है।
📌 अमेरिकी थिंक टैंकों ने कहा कि भारत खुद को पश्चिमी सुरक्षा गठबंधन से अलग कर रहा है।
📌 यूरोपीय संघ ने भारत पर “नैतिक रूप से असंवेदनशील” होने का आरोप लगाया।
एस. जयशंकर का करारा जवाब
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इन आरोपों पर कड़ा जवाब दिया। उन्होंने स्पष्ट किया:
“यूरोप को समझना होगा कि उसकी समस्याएं पूरी दुनिया की समस्याएं नहीं हैं। भारत को अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से फैसले लेने का अधिकार है।”
📌 भारत ने यूक्रेन(India Ukraine Relations) के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से भी मुलाकात की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वह सिर्फ रूस का समर्थन नहीं कर रहा है, बल्कि शांति वार्ता को बढ़ावा दे रहा है।
📌 भारत ने तेल खरीदकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया और रूस से सस्ते हथियारों की आपूर्ति सुनिश्चित की।
🔹 अंतिम परिणाम: भारत न सिर्फ पश्चिमी आलोचनाओं का सामना करने में सफल रहा, बल्कि अपनी कूटनीति से आर्थिक लाभ भी कमाया।
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पश्चिम के विरोध के बावजूद मोदी का रूस(India Russia Relationship) दौरा
नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक रूस यात्रा
📅 8-9 जुलाई 2023: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मास्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने पहुंचे।
✅ यह यात्रा ऐसे समय हुई, जब पश्चिमी देशों ने रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश की।
✅ अमेरिका और यूरोप ने इसे “पश्चिमी गठबंधन के खिलाफ कदम” बताया।
✅ G7 देशों ने कहा कि भारत को रूस से दूरी बनाए रखनी चाहिए।
पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया
📌 अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जैक सुलिवन ने कहा कि “रूस अब चीन का जूनियर पार्टनर बन चुका है और भारत को इससे सतर्क रहना चाहिए।”
📌 फ्रांस और जर्मनी ने कहा कि भारत यूरोप के सहयोग की अनदेखी कर रहा है।
📌 ब्रिटेन की सरकार ने मोदी की यात्रा को “गलत समय पर लिया गया निर्णय” बताया।
भारत ने यात्रा से क्या हासिल किया?
✅ तेल, गैस और रक्षा सौदों पर समझौते हुए, जिससे भारत को ऊर्जा संकट से बचने में मदद मिली।
✅ रुपये-रूबल व्यापार व्यवस्था पर चर्चा हुई, जिससे भारत की डॉलर पर निर्भरता कम होगी।
✅ रूस ने भारत को आर्म्स सप्लाई जारी रखने का आश्वासन दिया।
📌 यह यात्रा भारत-रूस संबंधों को और मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई।
क्या भारत का निर्णय सही था? ट्रंप की नीतियों से जवाब मिल गया!
ट्रंप और रूस: अमेरिका का बदला हुआ रुख
अब जब डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, उन्होंने रूस के खिलाफ अपने रुख को नरम कर दिया है।
📌 ट्रंप ने कहा कि वह रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए केवल पुतिन से बातचीत करेंगे।
📌 अमेरिका अब खुद रूस के साथ बातचीत कर रहा है, जबकि 2022 में उसने भारत को रूस से दूरी बनाने की सलाह दी थी।
📌 यूरोपीय देश अब खुद रूस के साथ व्यापारिक संबंध सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत की Indian Foreign Policy की दूरदर्शिता सही साबित हुई।
भारत को अमेरिका और यूरोप ने रूस से संबंध तोड़ने की सलाह दी थी, लेकिन अब वे खुद अपनी रणनीतियों में बदलाव कर रहे हैं।
📌 अगर भारत ने पश्चिमी दबाव में आकर रूस से संबंध तोड़ दिए होते, तो उसे सस्ते तेल और सस्ते हथियारों का फायदा नहीं मिलता।
📌 ट्रंप की बदलती नीतियों से यह साबित होता है कि भारत का निर्णय सही और दूरदर्शी था।
📌 भारत ने पश्चिमी आलोचनाओं की परवाह किए बिना अपने हितों को प्राथमिकता दी और आज इसका लाभ मिल रहा है।
भारत-रूस संबंधों का भविष्य
भारत और रूस के बीच संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं।
📌 ऊर्जा क्षेत्र: भारत रूस से सस्ती दरों पर कच्चा तेल, गैस और कोयला खरीदता रहेगा।
📌 रक्षा सहयोग: भारतीय सेना के 70% हथियार और सैन्य उपकरण रूसी तकनीक पर आधारित हैं।
📌 वैश्विक रणनीति: भारत रूस के साथ संबंध बनाए रखेगा लेकिन अमेरिका और यूरोप से भी संतुलन बनाए रखेगा।
निष्कर्ष: भारतीय विदेश नीति की कूटनीतिक जीत
📌 भारत ने अमेरिका और यूरोप के दबाव में आए बिना रूस से अपने संबंध बनाए रखे।
📌 सस्ता तेल और हथियार खरीदकर भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया।
📌 नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ने यह साबित किया कि भारत एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति है।
📌 ट्रंप की बदलती नीतियों ने दिखा दिया कि भारत ने सही निर्णय लिया था।
आज, जब अमेरिका और यूरोप खुद रूस से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं, भारत की विदेश नीति की सफलता पूरी दुनिया के सामने है। यह भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता और कूटनीतिक चतुराई की जीत है! 🚀🇮🇳
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Author: D Insight News
दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।
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दीपक चौधरी एक अनुभवी संपादक हैं, जिन्हें पत्रकारिता में चार वर्षों का अनुभव है। वे राजनीतिक घटनाओं के विश्लेषण में विशेष दक्षता रखते हैं। उनकी लेखनी गहरी अंतर्दृष्टि और तथ्यों पर आधारित होती है, जिससे वे पाठकों को सूचित और जागरूक करते हैं।
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