तेज रफ्तार ट्रक परिवार को कुचलते रहे , मदद की गुहार लगाता रहा बेटा, मगर कोई नहीं रुका! जमशेदपुर में दिल दहला देने वाला हादसा

सांकेतिक फोटो

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जमशेदपुर में दिल दहला देने वाला हादसा: तेज रफ्तार ट्रक ने परिवार को कुचला, मदद की गुहार लगाता रहा बेटा, मगर कोई नहीं रुका!

जमशेदपुर की सड़कों पर एक दर्दनाक हादसा हुआ, जिसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया। एक तेज रफ्तार ट्रक ने रॉन्ग साइड में चलते हुए एक स्कूटी सवार परिवार को रौंद दिया। हादसे के बाद सड़क पर एक लड़का ज़ख्मी हालत में पड़ा मदद की गुहार लगा रहा था, लेकिन कोई नहीं रुका। उसकी बहन का शव सड़क पर पड़ा था और बड़ी गाड़ियों के बेरहम पहिए उसे कुचलते जा रहे थे। पिता का शव 200 मीटर दूर मिला, क्योंकि ट्रक स्कूटी को घसीटते हुए भाग रहा था। यह घटना न सिर्फ एक परिवार की बर्बादी की कहानी है, बल्कि समाज की संवेदनहीनता और प्रशासन की असंवेदनशीलता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है।


प्रत्यक्षदर्शी की आंखों देखी – “भइया, मेरी दीदी को बचा लो…”

इस भयावह घटना का गवाह बना एक युवक, जो रात 1:30 बजे अपने दफ्तर से घर लौट रहा था। उसने बताया,
“मैं जैसे ही जेम्को के पहले गोलचक्कर से आगे बढ़ा, तो देखा कि एक ट्रक रॉन्ग साइड में दौड़ रहा था। उसकी रफ्तार बहुत तेज थी और उसके नीचे से चिंगारियां निकल रही थीं। पहले लगा कि ट्रक में कोई खराबी आ गई है, लेकिन जब कुछ दूर गया, तो देखा सड़क किनारे एक घायल लड़का पड़ा था, जो हाथ जोड़कर मदद मांग रहा था।”

युवक ने जैसे ही बाइक रोकी, लड़के ने रोते हुए कहा, “भइया, मेरी दीदी और पापा कहां हैं? मेरी दीदी को बचा लो…”
सड़क के दूसरी ओर लड़की की लाश पड़ी थी, लेकिन कोई भी गाड़ी रुकने को तैयार नहीं थी। तेज रफ्तार ट्रक और गाड़ियां शव के ऊपर से गुजर रही थीं, मानो इंसानियत मर चुकी हो।


पुलिस की संवेदनहीनता – “यह हमारे क्षेत्र में नहीं आता…”

प्रत्यक्षदर्शी जब बर्मामाइंस थाना मदद मांगने पहुंचा, तो पुलिस ने जवाब दिया,
“हम वहां नहीं जा सकते, यह इलाका हमारे क्षेत्र में नहीं आता। जाओ, टेल्को थाना में बताओ।”

यह सुनकर युवक स्तब्ध रह गया। क्या इंसानियत की भी कोई सीमाएं होती हैं? क्या पुलिस का पहला कर्तव्य पीड़ितों की मदद करना नहीं है? उसने फिर टेल्को पुलिस को सूचना दी, जो तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और सड़क पर गाड़ियों की आवाजाही रोकी।


कैसे हुआ हादसा?

  • मृतक परिवार स्टेशन से लौट रहा था, क्योंकि उनकी ट्रेन छूट गई थी।
  • स्कूटी सवार पिता, बेटी और बेटा सड़क किनारे थे।
  • ट्रक तेज़ रफ्तार में आया और स्कूटी को टक्कर मार दी।
  • ट्रक के नीचे स्कूटी फंस गई और चालक उसे 200 मीटर तक घसीटता ले गया।
  • इस दौरान ट्रक के नीचे से चिंगारियां निकल रही थीं, लेकिन चालक नहीं रुका।

समाज की संवेदनहीनता: जब किसी ने नहीं रोकी अपनी गाड़ी

इस घटना ने यह भी दिखाया कि हमारा समाज कितना असंवेदनशील हो चुका है। घायल लड़का हाथ जोड़कर लोगों से मदद मांग रहा था, लेकिन कोई भी गाड़ी रुकने को तैयार नहीं थी।

  • अगर एक भी गाड़ी समय पर रुक जाती, तो शायद उसकी बहन की लाश को बार-बार कुचला नहीं जाता।
  • अगर कोई समय पर पुलिस को फोन कर देता, तो शायद उसके पिता की लाश 200 मीटर तक घसीटकर नहीं जाती।

क्या हमारी संवेदनशीलता इतनी खत्म हो चुकी है कि हम किसी की मदद करने के बजाय सिर्फ तमाशा देखते हैं?


ऐसे हादसों को कैसे रोका जाए?

यह दुर्घटना हमें कई सबक देती है। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की ज़रूरत है:

  1. सड़क पर इंसानियत दिखाएं – अगर कोई हादसे में घायल है, तो तुरंत पुलिस और एंबुलेंस को फोन करें। किसी को तड़पते हुए अकेला न छोड़ें।
  2. ट्रकों पर सख्त नियंत्रण – प्रशासन को ट्रकों के लिए रात में स्पीड लिमिट और रॉन्ग साइड पर सख्त पाबंदी लगानी चाहिए।
  3. पुलिस की जिम्मेदारी तय हो – पुलिस को “यह हमारा क्षेत्र नहीं” कहकर पल्ला झाड़ने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। हर पुलिस थाने को तत्काल सहायता देने के लिए जिम्मेदार बनाया जाए।
  4. CCTV और सख्त ट्रैफिक चेकिंग – हर हाईवे और प्रमुख सड़कों पर CCTV कैमरे और ट्रैफिक पुलिस की निगरानी होनी चाहिए, ताकि ऐसे ट्रक चालकों पर कड़ी कार्रवाई हो सके।
  5. हिट एंड रन मामलों में कड़ी सजा – सरकार को हिट एंड रन मामलों में और सख्त कानून लाने चाहिए, ताकि ऐसे लापरवाह ट्रक ड्राइवरों को कठोर सजा मिले।

निष्कर्ष: क्या हम अब भी चुप रहेंगे?

यह हादसा सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, यह हमारी संवेदनहीनता, पुलिस प्रशासन की लापरवाही और ट्रक ड्राइवरों की लापरवाही की दर्दनाक तस्वीर भी है।

अब सवाल यह है कि हम इस घटना से सबक लेंगे या फिर किसी और परिवार को इसी तरह अपनी जान गंवाते देखेंगे?
अगर हम सड़क पर किसी की मदद नहीं कर सकते, तो इंसान कहलाने का भी कोई हक नहीं।

👉 क्या आप ऐसे हादसों को रोकने के लिए कोई कदम उठाएंगे? या फिर अगली बार भी कोई मदद की गुहार लगाता रहेगा, और हम बस देखते रहेंगे?

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